DGP ने व्यवस्था लागू करते ही वटोरी वाहवाही – जानिए क्या है ऐसी व्यवस्था
देहरादून —
सूबे में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा बटोर रहे हैं नए पुलिस मुखिया अशोक कुमार। एक महीना पहले ही राज्य के 11 वें पुलिस महानिदेशक के रूप में कमान संभाली इन्होंने, लेकिन इतने कम समय में भी ऐसी ताबड़तोड़ बैटिंग कर डाली कि तमाम रिकार्ड ध्वस्त। खासकर, पुलिस कार्मिकों के हितों को लेकर जिस तरह के कदम उठाए, उससे हर ओर इनकी वाहवाही हो रही है। किसी ने अब तक सोचा भी नहीं था, मगर अशोक कुमार ने आते ही पुलिस के लिए साप्ताहिक अवकाश की व्यवस्था लागू कर दी। लंबे समय से लटके पदोन्नति के मामलों में भी तेजी आई है। सबसे दिलचस्प फैसला रहा कांस्टेबलों तक को बाजू पर प्रतीक चिह्न (मोनोग्राम) लगाने का अधिकार देने का। महत्वपूर्ण बात यह कि ये तमाम फैसले ऐसे हैं, जिनसे सरकार पर कोई वित्तीय भार भी नहीं पड़ा और कार्मिकों की बल्ले-बल्ले। उम्मीद है आगे भी यही फॉर्म बरकरार रखेंगे जनाब।
कर्मकार बोर्ड ने पिछले तीन-चार महीनों में इतनी चर्चा बटोरी कि भ्रम होने लगा कि यह भाजपा-कांग्रेस के बीच की अदावत है, जबकि सच यह है कि मसला सत्तारूढ भाजपा के अंदर का ही है। पहले सरकार ने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को उस बोर्ड के अध्यक्ष पद से बेदखल किया, जो उन्हीं के महकमे का हिस्सा है। उस पर तुर्रा यह कि उनके बोर्ड अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल के तीन सालों की जांच भी बिठा दी गई। कैसे अजब हालात हैं, मंत्री रहते हुए मंत्री के कार्यकाल की जांच के आदेश। मान लीजिए, अगर मंत्री का दोष साबित होता है तो किरकिरी तो सरकार की ही होगी न। उधर, अब कर्मकार बोर्ड भी कठघरे में खड़ा है, कार्यालय का किराया और बिजली बिल का भुगतान जो नहीं किया। मकान मालिक ने नोटिस थमा दिया। अब सवाल यह कि कई महीनों से किराया न देने का जिम्मेदार कौन।
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