Thursday, May 9, 2024
उत्तर प्रदेश

हुकूमतों की सरपरस्ती में बनते हैं अतीक!

 

कोई भी गैंगस्टर माफिया एक दिन में नहीं पैदा होता या पनपता है। इन्हें हकूमतों की सरमायेदारी में फलने-फूलने का पूरा मौका मिलता है। राजनीतिक संरक्षणदाता माफियाओं के कंधे पर बंदूक रख कर अपने राजनीतिक व आर्थिक हितों का संधान करते हैं और खुद सफेदपोश समाजसेवी बने रहते हैं। इनके बूते पर अपने विरोधियों पर दबाव बनाते हैं किसी भी अपराधी को जब राजनीतिक संरक्षण मिल जाता है तो पुलिस प्रशासन सिर्फ लकीर पीटने भर की कार्रवाई करते हैं और उसके खौफ आतंक और दहशत का साम्राज्य दिन दूनी रात चौगुनी गति से फैलता चला जाता है। इसीके साथ शुरू होता है शहर और इलाके के बड़े उद्यमियों कारोबारियों बिल्डरों से वसूली और जमीनों पर कब्जे का सरकारी ठेकों पर कब्जा जमाने का सिलसिला। इस सारी काली कमाई में एक हिस्सा इनके राजनीतिक संरक्षण दाताओं को जाता है। एक हिस्सा पुलिस प्रशासन के छोटे बड़े अधिकारियों की जेब में जाता है और बाकी माफिया अपनी संपत्ति को बढ़ाने और अपने गुर्गों को टुकड़ा डालने के लिए इस्तेमाल में लेता है। इस तरह एक माफिया का जन्म होता है। कोई 10वीं फेल पढ़ाई छोड़कर गली मोहल्ले से गुंडई शुरू करने वाला अपराधी न सिर्फ जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बन जाता है बल्कि अपने आतंक खौफ के बूते पर राजनीतिक संरक्षणदाताओं से मिल रहे सहयोग की बदौलत कई बार विधायक व सांसद तक बन जाता है। हजारों करोड़ की चल अचल संपत्ति बटोर लेता है कोई पुलिस अधिकारी उसके खिलाफ तो दूर उसके गुर्गों के खिलाफ भी कार्रवाई करने से घबराता है। यहां तक कि दस जज उसके मुकदमों को सुनवाई करने से इंकार कर देते हैं। ऐसे ही खौफ और आतंक को बुलाया जाता है अतीक।
माफिया अपराधी अतीक के पिता हाजी फिरोज अहमद प्रयागराज में तांगा चलाते थे। अतीक पैतृक गांव कसारी मसारी के स्कूल में पढ़ने जाता था। वह दसवीं पास नहीं कर सका और स्कूल छोड़ दिया। उसका परिवार गांव छोड़ कर चकिया आ गया। अतीक ने चकिया में पहला अपराध किया और अपना गिरोह बना लिया, जिसमें ज्यादातर गांव के लुटेरे होते थे। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक अतीक के खिलाफ पहला हत्या का मामला 1979 में प्रयागराज के खुल्दाबाद पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। बाद में वह जबरन वसूली और जमीन हड़पने सहित अन्य अपराधों में शामिल हो गया। साल 1979 में अतीक पर हत्या का पहला मुकदमा लिखा गया तो उसका जलजला कायम हो गया। उस समय चांद बाबा का सिक्का चलता था। पुलिस भी चांद बाबा के दहशत में रहती थी। चांद बाबा का वर्चस्व खत्म करने के लिए पुलिस ने अतीक के ऊपर हाथ रख दिया। वर्ष 1989 में अतीक शहर पश्चिमी से निर्दलीय प्रत्याशी बना और चांद बाबा को हरा दिया। आरोप है कि एमएलए बनने के बाद अतीक की हवस और बढ़ी। नतीजे में रास्ते का कांटा चांद बाबा पर गोली बम बरसाकर सरेआम हत्या करा दी। सभासद अशफाक कुन्नू का 1994 में कत्ल हो गया। उस हत्याकांड में अतीक और अशरफ का नाम आया था लेकिन तब अतीक का ऐसा दबदबा था कि उस पर कानूनी शिकंजा नहीं कसा गया। कोई पुलिस अधिकारी अतीक पर हाथ नहीं डालना चाहता था। घटना के पांच साल बाद 1999 में तब के एसपी सिटी लालजी शुक्ला ने अशफाक कुन्नू हत्याकांड में अशरफ की गिरफ्तारी की। यह भी संयोग ही है कि तब भी उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और आज भी भाजपा की ही सरकार है। साल 1996 में व्यापारी अशोक साहू की हत्या कर दी थी। साल 2003 में अपने ही घर के सामने भाजपा नेता अशरफ को मार दिया था। साल 2005 में दिनदहाड़े एमएलए राजू पाल की गोलियां बरसा कर हत्या कर दी गई थी। साल 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त अतीक अहमद जेल में था। उसने चुनाव लड़ने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी। हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत मिल गई। इस चुनाव में अतीक अहमद की हार हुई। उसे राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने हरा दिया। अतीक देवरिया जेल में बंद था, तब उसके इशारे पर बिल्डर मोहित जायसवाल को लखनऊ से देवरिया जेल लाकर न केवल पिटाई की गई बल्कि उसकी करोड़ों की संपत्ति हथियाने के लिए स्टांप पेपर पर जबरन दस्तखत करवाया गया। इसी मुकदमे में अतीक के बड़े बेटे उमर के खिलाफ मुकदमा लिखा गया।
अपराध और दबंगई के साथ ही राजनीतिक संरक्षण के चलते अतीक ने पहली बार प्रयागराज पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद सपा का टिकट हासिल कर तीन बार लगातार विधायक का चुनाव जीता। सपा के टिकट पर 2004 में जब फूलपुर से लोकसभा का चुनाव लड़कर सांसद बना तब राजूपाल ने उसी प्रयागराज पश्चिमी सीट से विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर अतीक के भाई अशरफ को हरा दिया बस यहीं से अतीक और राजू पाल दोनों में रंजिश व वर्चस्व की जंग छिड़ गई और 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या कर दी गई । उमेश पाल इस मर्डर का चश्मदीद गवाह था। अतीक ने उमेश पाल को कई बार गवाही नहीं देने को कहा लेकिन वह नहीं माना । उमेश पाल नहीं माना तो 28 फरवरी 2006 को उसका अपहरण करा दिया गया, जिसके बाद 2007 में अतीक और उसके भाई अशरफ सहित 10 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दी गई। इसी के बाद वह अतीक का दुश्मन बन गया। अतीक पर उमेश पाल हत्याकांड में षडयंत्र रचने के अलावा 100 से अधिक केस दर्ज थे। वहीं उसके पूरे परिवार पर 160 केस दर्ज थे । अतीक अहमद 2019 से गुजरात की साबरमती सेंट्रल जेल में बंद था। उमेश पाल की पत्नी जया पाल की शिकायत के आधार पर धूमनगंज थाने में अतीक, उसके भाई अशरफ, पत्नी शाइस्ता परवीन, बेटे असद, सहयोगी गुड्डू मुस्लिम और गुलाम और नौ अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
प्रयागराज शहर और बाहरी इलाके में अतीक के नाम का खौफ था। अतीक अपने विरोधियों को झूठे मामलों में फंसा देता था। वह हमेशा कानून से बचता रहा है।प्रयागराज के खुल्दाबाद थाने के रिकॉर्ड में अतीक हिस्ट्रीशीटर नंबर 39 था, जिसके खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और जबरन वसूली सहित लगभग 100 मामले दर्ज थे। अतीक प्रयागराज में 144 सदस्यों वाला गिरोह चलाता था।
बहरहाल अतीक अब अतीत बन चुका है। आवाज इस बात के लिए उठानी चाहिए कि पुलिस प्रशासन अदालत को राजनीतिक दखल से पृथक रखा जाए ताकि सिस्टम के सुराखो का नाजायज लाभ उठाकर कोई दूसरा अतीक न बन सके। (हिफी)

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