Tuesday, May 14, 2024
देशहोम

कांग्रेस और सत्याग्रह की प्रासंगिकता

 

कांग्रेस अपने को देश की सबसे पुरानी पार्टी मानती है लेकिन सत्याग्रह के आधार पर पुरानी और वर्तमान कांग्रेस के अन्तर को समझा जा सकता है। स्वतन्त्रता संग्राम में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह का प्रयोग किया था। उन्होने सत्य के प्रति आग्रह को अपने में जीवन सिद्ध किया था। इसके बाद ही सत्याग्रह का मार्ग अपनाया था। महात्मा गांधी ने इसे अपने अहिंसक संग्राम का अस्त्र बनाया था। जिस प्रकार अस्त्र शस्त्र संचालन के लिए निर्धारित प्रशिक्षण और योग्यता अनिवार्य होती है, उसी प्रकार सत्याग्रह रूपी अस्त्र के संचालन का अधिकार हर किसी को नहीं हो सकता।इसके लिए महात्मा गांधी की तरह सत्य के प्रति आग्रह का भाव होना चाहिए। ईमानदारी के मार्ग का अनुसरण करने वाले ही सत्याग्रह के अधिकारी हो सकते है। इसमें साधन के साथ साथ साध्य की पवित्रता होनी चाहिए। स्वतन्त्रता प्राप्त करना पवित्र साध्य था। महात्मा गांधी ने इसे प्राप्त करने का साधन भी पवित्र रखा था। वर्तमान कांग्रेस अपने अंदाज का प्रयोग कर रही है। पिछले कुछ महिनों की अवधि में उसने दो बार सत्याग्रह किए है। लेकिन साध्य और साधन दोनों में सत्य के तत्व नहीं हैं। पहला सत्याग्रह नेशनल हेराल्ड घोटाले में जांच के विरोध हेतु किया गया। दूसरा सत्याग्रह राहुल पर न्यायिक निर्णय के विरोध में किया जा रहा है। इसमें सरकार सरकारी जांच एजेन्सी या सत्ताधारी दल की कोई भूमिका नहीं है। राहुल गांधी का बयान एक जाति विशेष को लाक्षित करने वाला था। न्यायपालिका ने इसी पर निर्णय सुनाया था। इसी आधार पर उनकी संसद सदस्यता समाप्त हुई। राहुल गांधी के सामने न्यायिक प्रक्रिया के अनुरूप विकल्प थे। वह निर्णय के विरुद्ध स्टे का आग्रह कर सकते थे। वह ऊपरी अदालत में अपील कर सकते थे।इसकी जगह कांग्रेस ने सत्याग्रह शुरू कर दिया। सरकार पर विपक्ष को समाप्त करने के आरोप लगाए गए। न्यायिक निर्णय पर इस प्रकार की बातों को सत्य नहीं कहा जा सकता। क्या सत्याग्रह ऐसा होता है। राहुल गांधी देशभर में मानहानि के कई मामलों का सामना कर रहे हैं। उनमें से ज्यादातर आपराधिक मानहानि के मामले हैं। इस बार वह अपने प्रसंग में वीर सावरकर को भी ले आए। एक विलक्षण स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी का इस प्रकार नाम लेना बेमानी है। जिस प्रकार सत्याग्रह अधिकार की सीमाएं है। सत्य के मार्ग का अनुसरण करने वाला ही सत्याग्रह कर सकता है उसी प्रकार वीर सावरकर को समझने के बाद ही उन पर टिप्पणी करनी चाहिए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का बयान बहुत सटीक है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को कम से कम एक बार सेलुलर जेल में रहना चाहिए। वीर सावरकर को तड़पाया गया, काले पानी में कैद कर दिया गया, उन्हें मिट्टी में डाल दिया गया। उन्होंने देश की आजादी के लिए कितना कुछ सहा। राहुल गांधी को कम से कम एक बार सेलुलर जेल में रहना चाहिए, अगर वह आधे घंटे के लिए उस गंदगी में रहें, तो उन्हें पता चलेगा कि सेलुलर जेल की यातनाएं क्या हैं। कोर्ट ने राहुल गांधी को मोदी समुदाय के बारे में उनके बयान के लिए सजा दी है। कांग्रेस द्वारा बनाये गये कानून के अनुसार उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई।
संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 के तहत राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त की गई है। राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें लोकसभा की सदस्यता जाने की कोई परवाह नहीं है। वह सच बोलते रहेंगे और सत्ता से सवाल पूछते रहेंगे। उनके इस बयान का निहितार्थ यह है कि उनके बोलने पर पहले भी कोई अंकुश नहीं था।उनकी आवाज को दबाया नहीं जाता था। उनके कैंब्रिज बयान में कोई सच्चाई नहीं है। राहुल को बताना चाहिए कि उन पर न्यायपालिका का निर्णय लोकतंत्र पर हमला कैसे हो सकता है। राहुल ने कहा कि मेरा नाम गांधी है और मैं किसी से माफी नहीं मांगता। वीर सावरकर का यह साहस था कि उन्होने ब्रिटेन की धरती से भारत की स्वतन्त्रता का उद्घोष किया था। इंदिरा गांधी ने 20 मई 1980 को लिखा था कि वीर सावरकर का ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मजबूत प्रतिरोध हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में एक विशेष स्थान रखता है। वे देश के महान सपूत थे। वीर सावरकर की किताब भारत का प्रथम स्वातंत्र्य समर का पंजाबी में अनुवाद करवाकर बांटने के लिए खुद भगत सिंह वीर सावरकर से मिलने रत्नागिरी गए थे। फांसी से पहले भगत सिंह जिनकी दो-दो किताबों से अपनी डायरी में नोट्स बना रहे थे। कांग्रेस ने भी 1923 के काकीनाडा अधिवेशन में वीर सावरकर के लिए रिजोल्यूशन पास किया था। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सावरकर के योगदान को स्वीकार करने के लिए इंदिरा गांधी के कार्यकाल में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
सत्याग्रह शब्द का व्यापक निहितार्थ है। इसमें सत्य है। प्रत्येक परिस्थिति में उस पर डटे रहने का आग्रह है।इसमें राजनीति के आदर्श और सिद्धांत का समावेश है। इसके पहले नेशनल हेराल्ड मामले पर कांग्रेस ने सत्याग्रह किया था। सोनिया गांधी और राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड घोटाले के आरोपी है। ईडी उनसे पूछ ताछ कर रही थी। यूपीए सरकार के समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी घण्टों सवाल पूछे जाते थे लेकिन भाजपा ने कभी इसके विरोध में सत्याग्रह नहीं किया। नरेंद्र मोदी ने भी पूरा सहयोग किया था। अंततः वह निर्दोष साबित हुए। नेशनल हेराल्ड मसले पर गंभीर प्रश्न है।नेशनल हेराल्ड को कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता है। आर्थिक हालात के चलते 2008 में इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया था। एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कंपनी है। कांग्रेस ने 2011 में इसकी नब्बे करोड़ रुपये की देनदारियों को अपने जिम्मे ले लिया था। इस हैसियत से पार्टी ने इसे नब्बे करोड़ रुपये का कर्ज दिया था। इसके बाद पांच लाख रुपये से यंग इंडियन कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया और राहुल की अड़तीस अड़तीस प्रतिशत हिस्सेदारी रखी गई। शेष चौबीस प्रतिशत हिस्सेदारी कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के पास रही।हाईकोर्ट ने कहा कि एजेएल के निन्यानवे प्रतिशत शेयर हासिल करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई, वह संदिग्ध है। एजेएल को यंग इंडिया ने हाईजैक किया और इसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी सबसे बड़े भागीदार हैं। कुछ वर्ष पहले एक याचिका में कहा गया था कि नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग खाली करने का आदेश विवादास्पद उदेश्य,बदनीयत और पूर्वाग्रह से ग्रस्त था। इससे जवाहरलाल नेहरू की विरासत समाप्त करने का प्रयास किया गया है। हाईकोर्ट ने इन सभी आरोपों को नकार दिया था। पूरा मामला किसी रोचक पटकथा जैसा है। एक समय था जब इस अखबार की सम्पत्ति पांच हजार करोड़ रुपये तक पहुँच गई। फिर किस प्रकार सन् दो हजार में इस पर नब्बे करोड़ का कर्जा हो गया। फिर क्यों नेशनल हेराल्ड के तत्कालीन डायरेक्टर्स, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और मोतीलाल वोरा ने इसे यंग इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी को बेचने का निर्णय लिया था जबकि ‘यंग इंडिया’ के डायरेक्टर्स भी सोनिया गाँधी,राहुल गाँधी,ऑस्कर फर्नाडीज और मोतीलाल वोरा ही थे। डील यह थी कि यंग इंडिया नेशनल हेराल्ड’ के नब्बे करोड़ के कर्ज को चुकाएगी। बदले में पांच करोड़ रुपए की अचल संपत्ति यंग इंडिया को मिलेगी।इस डील को फाइनल करनें के लिए ‘नेशनल हेराल्ड’ के डायरेक्टर मोती लाल वोरा ने यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा से बात की। वह दोनों ही कंपनियों के डायरेक्टर्स थे। तो ऐसा करना जरूरी था। नब्बे करोड़ रूपये कर्ज चुकाने के लिए ‘यंग इंडिया’ ने कांग्रेस पार्टी से कर्ज माँगा। इस प्रस्ताव पर विचार हेतु सोनिया गांधी,राहुल गांधी ऑस्कर फर्नांडिस और मोतीलाल वोरा की मीटिंग बुलाई गई। कर्ज प्रस्ताव पर निर्णय का अधिकार इन्हीं दिग्गजों को था। इन्होंने गंभीरता से विचार किया। कर्ज देना स्वीकार कर लिया। तत्कालीन कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने सहर्ष स्वीकृत प्रदान कर दी। फिर ‘यंग इंडिया’ के डायरेक्टर के रूप में मोतीलाल वोरा ने यह धनराशि ग्रहण की। मामला अदालत का था तो सत्याग्रह क्यों?

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