मुक्तीदाता होने की घोषणा गुर्जर वशं ने की थी
कोहलापुर के महाराज छत्रपति शाहू जी महाराज एक जानी मानी हस्ती थे| महान वश गुर्जर प्रतिहार वंश की उपजाति में पैदा ये महामानव उदार, मानवताभाव, अदम्य साहस, शक्ति सक्लप और निश्छल व्यक्तित्व के धनी था| उनकी छुवाछुत मिटाने दलित वर्गो के कल्याण में गहरी रूचि थी| उन्होंने निम्न वर्गो में शिक्षा का प्रचार प्रसार करने ,और उन्हें ब्राह्मणो के अन्यायपूर्ण प्रभुत्व और अत्याचारी पुरोहिती से मुक्त करने और उन पूर्वाग्रहों और अवरोधों को समाप्त करने के लिए हर सम्भव प्रयाश किये| जिन्हे जाति व्यवस्था ने खड़ा किया था| महारजा छत्रपति साहूजी महाराज ने अछूतो को हर सम्भव तरिके से प्रोत्साहित किया| उन्होंने अपने राज्य में नौकरी दी ,वकालत करने के लिए रुपयों से सहायता की और सार्वजनिक तोर पर उनके साथ भोजन किया| उन्होंने अछूत विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा ,भोजन ,और आवास उपलब्ध कराया
महाराज से अम्बेडकर जी का घनिष्ट संबंध था बाबा साहेब ने अपने अख़बार मूकनायक के लिए मदद भी थी अख़बार के पहले अंक में कहा की भारत असमानता का घर है और हिन्दू समाज एक मीनार की तरह है जिसमे अनेक मंजिल है कोई सीढ़ी या दरवाजा नहीं है व्यक्ति जिस मंजिल में पैदा हुवा उसी में उसको मरणा है मूकनायक में छपे एक लेख में उन्होंने कहा भारत के लिए एक स्वाधीन देश बनना पर्याप्त नहीं है उसे एक अच्छे राज्य के रूप में उभरना होगा जिसमे सभी वर्गो के लिए धार्मिक सामाजिक आर्थिक और राजनितिक मामलो में समान हैसियत की गारंटी हो| जिसमे प्रतेयक व्यक्ति को जीवन के सोपान पर चढ़ने और अपनी प्रगति के लिए अनुकूल परिस्थितिया बनाने का अवसर हो | एक और लेख में बाबा साहेब ने कहा की कि जिस स्वराज में दलित वर्गो के लिए मैलिक अधिकारो की गारटी नही हो, वह उनके लिए स्वराज नही होगा; अपितु यह उनके लिए एक नई गुलामी होगी।
बाबा साहेब ने 21 मार्च 1920 को कोल्हापुर राज्य के मनगांव में अछूतो की एक कान्फ्रेंस की अध्यक्षता की।इसमें माननीय शाहू महाराज स्वय पधारे इस अवसर पर बोलते हुए जब महाराजा ने एक पैगम्बरी अंदाज में यह घोषण की तो श्रोता मंत्रमुग्ध रह गए —’ आपको बाबा साहेब के रूप में आपका मुक्तिदाता मिल गया है। मुझे विश्वास है कि वह आपकी बेडियो को तोड़ देगे। यही नही मेरा अंत:करण कहता है कि एक समय आएगा, जब बाबा एक अखिल भारतीय ख्याति और अपील वाले अग्रिम श्रेणी के नेता के रूप में चमकेगे।
कान्फ्रेस का समापन एक अंतरजातीय भोज के साथ हुआ, जिसमें स्वय महाराजा, राज्य के अधिकारियो, जागीरदारो और अन्य व्यक्तियो ने भाग लिया ( भोज में सम्मिलित अछूतो की अगुवाई बाबा साहेब ने की।
मई 1920 के अतिम सप्ताह में अछूतो ने नागपुर में पहली अखिल भारतीय कांन्फेंस की ।इसकी अध्यक्ष्ता कोल्हपुर के शाहू महाराजा जैसे व्यक्तित्व ने की। इस कान्फेंस में बाबा साहेब की आवाज गूजी। इसी में बहस के दौरान एक वाद— विवादी के रूप में उनकी योग्यता उल्लेखनीय रूप में सामने आई । यही बाबा साहेब ने सार्वजनिक जीवन में अपनी पहली जीत हासिल की थी
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