एएमयू ओल्ड ब्वायज़ एसोसियेशन ने मनाया सर सय्य्यद डे
शारिक जैदी
बिजनौर /स्योहारा
17 अक्तूबर 1817 को पैदा हुए समाज सुधारक, विधिवेत्ता, शिक्षक और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक महान विद्वान सर सययद अहमद खंा के पैदाइश पर नगर के एवरग्रीन बैंकठ हाल में एक ओल्ड ब्वायज़ एसोसियेशन एएमयू द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन शकील एडवोकेट ने किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डा सय्यद मोहसिन रज़ा रहे। कार्यक्रम की शुरूआत में अल्फिया जै़दी ने नाते पाक सुनाकर सभी का मन मोह लिया। सर सय्यद की जिन्दगी पर रोशनी डालते हुए जसपुर से आये डा0 शमीम अहमद ने कहा कि 1857 के इन्कलाब के वक्त सर सययद अहमद खां बिजनौर में ही थे और इस इंकलाब को अंग्रेज़ों ने बग़ावत का नाम दिया था। अग्रेज़ों ने इस इंकलाब का ज़िम्मेदार मुसलमानों को मानते हुए उनके घरों को तबाह व बर्बाद कर उन पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया था तब इस सिलसिले में उन्होंने एक किताब ‘असबाब बगावत ए हिन्द’ लिखी थी जिसमें न केवल बगा़वत के असबाब लिखे गये थे बल्कि अंग्रेज़ों की नीतियों की आलोचना भी की गई थी। सर सययद साहब की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा बंटी वकील ने कहा कि सर सययद अहमद खां एक अज़ीम इंसान थे और उन्होंने उस वक्त एंगलो मोहम्मडन ओरियंटल कालेज की बुनियाद डाली जब मुस्लिम अंग्रेज़ी तालीम लेने से कतराते थे और आज वही कालेज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में मौजूद है। धामपुर से आये डॉ गय्यूर अहमद ने कहा कि सर सययद अहमद खंा ने लोगों को पारंपरिक शिक्षा के स्थान पर आधुनिक ज्ञान हासिल करने के लिये प्रेरित किया क्योंकि वह जानते थे कि आधुनिक शिक्षा के बिना प्रगति सम्भव नहीं है। सर सययद अहमद मुसलमानों और हिन्दुओं के विरोधात्मक स्वर को चुपचाप सहन करते रहे। इसी सहनशीलता का परिणाम है कि आज सर सययद अहमद खां को एक युग पुरूष के रूप में याद किया जाता है और हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही उनका आदर करते हैं। उन्होंने कहा कि सर सययद अहमद खंा ने सदा ही यह बात अपने भाषणों में कही थी कि हिन्दू और मुसलमान भारत की दो आंखे है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की हैसियत से बोलते हुए डॉ सय्यद मोहसिन रज़ा ने कहा कि सैयद के जीवन का सर्वोच्च उददेश्य शिक्षा का प्रचार प्रसार करके उसके व्यापकतम अर्थों में करना था और मुस्लिम समाज के सुधार के लिये प्रयासरत सर सैयद ने 1858 में मुरादाबाद में आधुनिक मदरसे की स्थापना के अलावा उन्होंने 1863 में गाज़ीपुर में भी एक आधुनिक स्कूल की स्थापना की जहंा पर पर वैज्ञानिक शिक्षा दी जाती थी उन्होंने बताया कि सययद साहब का एक और महत्वकांक्षी कार्य था ‘साइंटिफिक सोसाइटी’ की स्थापना जिसने कई शैक्षिक पुस्तकों का अनुवाद प्रकाशित किया और उर्दू तथा अग्रेज़ी में में द्विभाषी पत्रिका निकाली और ये संस्थायें सभी नागरिको के लिए थीं जिन्हें हिन्दू और मुसलमान दोनो ही मिलकर संचालित करते थे। उन्होंने बताया कि जब सर सययद 40 वर्ष के थे तो उस वक्त हिन्दुस्तान एक नया मोड़ ले रहा था और 1857 की महाक्रान्ति और उसकी असफलता के दुष्परिणाम उन्होंने अपनी आंखों से देखे। उनका घर तबाह हो गया, निकट सम्बन्धियों का कत्ल हुआ, उनकी मां जान बचाकर एक सप्ताह तक घोड़ों के अस्तबल में छुपी रहीं। उन्होंने कहा कि सर सययद की दूरदृष्टि इसकी गवाही दे रही थी कि सन् 1857 जंग मुसलमानो की आर्थिक तंगी का पैगाम दे रही है। इन हालातों मंे सययद साहब का समाज के लिये दिये गये योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। डा अज़ीमुद्दीन शेख ने सर सय्यद अहमद खॉ को भारत सरकार द्वारा भारत रत्न देने की मांग की। कार्यक्रम में शकील एडवोकेट और एहसन एडवोकेट ने बच्चों की तकनीकी शिक्षा के लिये एक शैक्षिणिक संस्थान की स्थापना का सुझाव दिया। इस मौके पर कार्यक्रम में डॉ आसिफ, डॉ साहिल, डॉ आरिफ, मास्टर रिज़वान, डॉ खुर्शीद, शमीम अहमद जै़दी, जावेद शम्स, एडवोकेट तुफैल, बंटी वकील सहित सैकड़ो लोग मौजूद रहें। कार्यक्रम का समापन तराने और राष्ट्रगान के साथ किया गया। आखिर में डा आसिफ ने कार्यक्रम में सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया।