Monday, May 20, 2024
देशसमाचार

आम्बेडकर की स्मृति में स्मारक

 

डॉ. भीमराव राम जी आंबेडकर की जीवन यात्रा स्वयं में प्रेरणादायक रही है। इस यात्रा के अनेक पड़ाव थे। प्रत्येक में उनके व्यक्तित्व व कृतित्व की झलक थी। ऐसे में इन स्थानों पर गरिमापूर्ण स्मारक दशकों पहले बनने चाहिए थे लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के अलावा किसी अन्य ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर के जीवन से जुड़े पांच स्थानों को भव्य स्मारक का रूप प्रदान किया। इसमें लंदन स्थित आवास, उनके जनस्थान,दीक्षा स्थल,इंदुमिल मुम्बई और नई दिल्ली का अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान शामिल हैं। यह अपने ढंग का अद्भुत संस्थान है, जिसमें एक ही छत के नीचे डॉ आंबेडकर के जीवन को आधुनिक तकनीक के माध्यम से देखा-समझा जा सकता है। नरेंद मोदी ने यह संस्थान राष्ट्र को समर्पित किया था। संयोग देखिये, इसकी कल्पना अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी और इसे पूरा नरेंद्र मोदी ने किया। बसपा के समर्थन से दस वर्ष चली यूपीए सरकार ने एक ईंट भी नहीं लगाई। मोदी ने निर्धारित सीमा में इसका निर्माण कार्य पूरा कर दिया। यह भी उल्लेखनीय है कि इन स्मारकों के निर्माण में भ्रष्टाचार आदि का कोई आरोप नहीं लगा,न मोदी ने कहीं भी अपना नाम या मूर्ति लगवाने का प्रयास किया। वे चाहते हैं कि भावी पीढ़ी महापुरुषों और सन्तो से प्रेरणा ले,जिन्होंने पूरा जीवन समाज के कल्याण में लगा दिया।
नरेन्द्र मोदी ने बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर की भावनाओं के अनुरूप भारत के निर्माण के लिए बिना भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को शासन की कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने का कार्य किया है। अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचाया है। लखनऊ में डॉ भीमराव आंबेडकर स्मारक एवं सांस्कृतिक केन्द्र का निर्मांण चल रहा है। यह स्मारक एवं सांस्कृतिक केन्द्र डॉ भीमराव आंबेडकर के आदर्शों के अनुरूप स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करेगा।
वोटबैंक की राजनीति ने चिंतन के दायरे को बहुत सीमित कर दिया है। केवल चुनावी चिंता से समाज का भला नहीं हो सकता। नरेंद्र मोदी भी चुनावी राजनीति में है। वह भी अपनी पार्टी को विजयी बनाने का प्रयास करते है लेकिन इसी को सामाजिक जीवन की सिद्धि नही मानते। वह इससे आगे तक की सोचते है। भावी पीढ़ियों और समाज के भविष्य के बारे में सोचते है। पंचतीर्थ से लेकर कबीर स्मारक तक उनके सभी प्रयास सामाजिक समरसता की प्रेरणा देने वाले है। प्राचीन भारतीय चिंतन में भी कर्मफल सिद्धान्त को बहुत महत्व दिया गया। मोदी ने कबीर के छह सौ बीसवें प्राकट्य दिवस पर मगहर आने का निर्णय लिया था। इस अवसर को भी उन्होंने विकास से जोड़ दिया। मगहर में विकास की अनेक योजनाएं चलाई जाएंगी। साथ ही मोदी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा देश के समग्र विकास के प्रति कटिबद्धता व्यक्त की। कहा कि आजादी के इतने वर्षों तक देश के कुछ ही हिस्से में विकास की रोशनी पहुंच सकी थी। हमारी सरकार का प्रयास है कि भारत भूमि की एक-एक इंच जमीन को विकास की धारा के साथ जोड़ा जाए। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इस जगह के लिए एक सपना देखा था। इसी के अनुरूप मगहर को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में सद्भाव और समरसता केंद्र के तौर पर विकसित करने का काम अब किया जा रहा है। मोदी कहते है कि सक्षम वर्ग की जिम्मेदारी यह है कि वह वंचित वर्ग को गरीबी से ऊपर लाने में सहयोगी बने। इस तरह मोदी शासन, राजनीतिक पार्टियों और धनी वर्ग सभी की जिम्मेदारी तय करते है। नरेंद्र मोदी के शासन का यही आधार भी रहा है। सबका साथ सबका विकास की नीति को कथित धर्मनिरपेक्षता का विकल्प बनाया। यह बता दिया कि देश के मुसलमान वोटबैंक नहीं है। वह भी इंसान है। उनके जीवन की भी मूलभूत आवश्यकताएं है। सरकार का दायित्व है कि वह सभी का जीवन स्तर उठाने का प्रयास करे। यही सेक्युलरिज्म है। मोदी की यह नीति प्रभावी और लोकप्रिय रही।
पंच तीर्थों पर गरिमापूर्ण स्मारक दशकों पहले बनने चाहिए थे लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के अलावा किसी अन्य ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अटल बिहारी वाजपेयी ने नई दिल्ली में उनके आवास को स्मारक रूप में विकसित करने का निर्णय लिया था किंतु यूपीए सरकार ने इस योजना को अपनी कार्यशैली के अनुरूप लंबित सूची में बनाये रखा था। मोदी सरकार ने 2015 को आंबेडकर की एक सौ पच्चीसवीं जयंती वर्ष घोषित किया था। इस वर्ष डॉ. आंबेडकर से संबंधित अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गए। उनके जन्मदिन चौदह अप्रैल को समरसता दिवस और छब्बीस नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया गया। अनुसन्धान हेतु सौ छात्रों को लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया विश्वविद्यालय भेजने का निर्णय लिया गया। इन दोनों संस्थानों में डॉ. आम्बेडकर ने अध्ययन किया था। डॉ. आम्बेडकर स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। एक नवंबर 1951 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद,वह 26 अलीपुर रोड, दिल्ली में सिरोही के महाराजा के घर में रहने लगे जहां उन्होंने 6 दिसम्बर 1956 को आखिरी सांस ली और महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। डॉ. आम्बेडकर की स्मृति में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 को महापरिनिर्वाण स्थल राष्ट्र को समर्पित किया था। प्रधानमंत्री ने मार्च, 2016 को इसकी आधारशिला रखी थी। इस इमारत को संविधान निर्माता बाबा साहब के स्मारक के रूप में निर्मित किया गया है, इमारत को पुस्तक का आकार दिया गया है। इसमें एक प्रदर्शनी स्थल, स्मारक, बुद्ध की प्रतिमा के साथ ध्यान केन्द्र, डॉ. आम्बेडकर की बारह फुट की कांस्य प्रतिमा है। प्रवेश द्वार पर ग्यारह मीटर ऊंचा अशोक स्तम्भ और पीछे की तरफ ध्यान केन्द्र बनाया गया है। स्मारक की पहल भाजपा की पहली सरकार ने की थी, इसे अंजाम तक भाजपा की दूसरी सरकार ने पहुंचाया। इसी क्रम में योगी आदित्यनाथ भी प्रयास करते रहे है।
उत्तर प्रदेश में भी दलित संतों विचारकों से संबंधित अनेक स्थलों को भव्यता प्रदान की जा रही है। लखनऊ के ऐशबाग में करीब पचास करोड़ की लागत से डॉ. भीमराव आंबेडकर स्मारक एवं सांस्कृतिक केंद्र स्थापित होगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस केंद्र का शिलान्यास किया था। इसमें डॉ. आंबेडकर की करीब पच्चीस फुट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी। इस स्मारक में डॉ। आम्बेडकर से जुड़े महत्वपूर्ण संकलनों को स्थान दिया जाएगा। योगी कैबिनेट लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह के सामने खाली पड़ी मौजा भदेवा की करीब साढ़े पांच हजार वर्ग मीटर नजूल भूमि को डॉ. आंबेडकर स्मारक एवं सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना के लिए संस्कृति विभाग के पक्ष में कुछ शर्तों व प्रतिबंधों के तहत निशुल्क आवंटित कर चुकी है।

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