Saturday, May 18, 2024
उत्तर प्रदेश

चैपाई पर राजनीति का उल्टा असर

नरेन्द्र मोदी ने परीक्षा पे चर्चा में बच्चों को एक सकरात्मक संदेश दिया था। इसमें उन्होने आलोचना और आरोप अर्थात सतही निंदा के बीच अन्तर को समझाया था। उनका कहना था कि आलोचना को सहज रूप में स्वीकार करना चाहिए जबकि
निराधार निंदा से विचलित नहीं होना चाहिए। आलोचना एक शुद्धि यज्ञ है। समृद्ध लोकतंत्र की मूल स्थिति है। आलोचना को आरोप नहीं समझना चाहिए।
आलोचना करने के लिए बहुत मेहनत और एनालिसिस करना पड़ता है। ज्यादातर लोग आरोप लगाते हैं, आलोचना नहीं करते। आलोचना और आरोप के बीच एक बड़ी खाई है। यह भी देखना महत्वपूर्ण होता है कि निंदा कर कौन रहा है। बच्चों को दी गई यह सीख प्रकारान्तर से आस्था पर प्रहार के संदर्भ में भी लागू होती है। रामचरित मानस की भी केवल निंदा की गई है। इसके लिए कोई गहन अध्ययन मनन चिन्तन नहीं किया गया। राजनीतिक लक्ष्य को ध्यान में रख कर बहु संख्यकों की आस्था पर आक्रमण कर दिया गया।
यह आलोचना नहीं है। वैसे निंदा या आलोचना केवल हिन्दू धर्म ग्रंथों की हो सकती है। यह बात निंदक लोग बखूबी समझते हैं। ऐसी उदारता अन्यत्र दुर्लभ है। इसमें भी निंदा या आरोप लगाना सर्वाधिक आसान होता है। आलोचना के लिए समीक्षा शोध करना पड़ता। रामचरित मानस महाकाव्य है। इसमें रचयिता पात्रों के माध्यम उसके कथन को रखते हैं लेकिन महाकाव्य के नायक का कथन कार्य और व्यवहार ही वास्तविक संदेश होता है। प्रभु श्री राम निषाद राज को गले लगाते हैं। शबरी के जूठे बेर खाते हैं। जननी सम जानहू पर नारी का संदेश देते हैं। ऐसे नायक कभी नारी या किसी अन्य के उत्पीड़न की बात नहीं कह सकते।
जिस चैपाई की निंदा की गई, वह समुद्र का कथन है। महाकाव्य को समझने के लिए यह देखना चाहिए कि सम्बन्धित कथन किसका है। महाकाव्य का वास्तविक संदेश केवल नायक के माध्यम से दिया जाता है। दूसरी बात यह कि निंदक लोग शूद्र और ताड़ना दोनों का गलत अर्थ निकाल रहे हैं। ताड़ना शब्द का अर्थ उत्पीड़न या प्रताड़ना नहीं है। ऐसा कहना अज्ञानता मात्र नहीं है। यह बहुसंख्यकों के विरुद्ध सुनियोजित साजिश है। अवधी भाषा का यह शब्द देखने और ध्यान रखने के लिए प्रयुक्त होता है।हिन्दू दर्शन में पशुओं के प्रति दया भाव दिखाया गया है। नारी के प्रति सम्मान का संदेश दिया गया। सम्बन्धित चैपाई का अनर्थ निकाला गया है।
इसी प्रकार शूद्र शब्द का वर्तमान अनुसूचित जाति जनजाति से कोई मतलब नहीं है। इसका प्रयोग क्षुद्र मानसिकता वालों के लिए किया गया है।इनका किसी जाति विशेष से संबंध नहीं है। इस शब्द को सेवक के संदर्भ में भी देख सकते हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने स्वामी प्रसाद के शरारती बयान का सटीक बयान दिया है। इस बयान के कुछ घण्टों के बाद उन्हें सपा ने राष्ट्रीय महासचिव के पद से पुरस्कृत किया। इससे पार्टी हाई कमान भी मायावती के निशाने पर आ गया है। उन्होने समाजवादी पार्टी को संविधान की अवहेलना न करने की चेतावनी दी है। मायावती ने कहा कि भारतीय संविधान है, जिसमें बाबा साहेब डा. भीमराव आम्बेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी-एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है। अतः इन्हें शूद्र कहकर सपा इनका अपमान न करे और न ही संविधान की अवहेलना करे।
गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाते हुए मायावती ने कहा कि सपा प्रमुख लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस की घटना को भी याद कर अपने गिरेबान में जरूर झांककर देखना चाहिए, जब मुख्यमंत्री बनने जा रही एक दलित की बेटी पर सपा सरकार में जानलेवा हमला कराया गया था। वैसे यह देखना दिलचस्प है कि राम चरित मानस की निंदा कर कौन रहा है।वह तेज आवाज में अपनी बात रखने में माहिर हैं। बयान वीरों की श्रेणी में हैं। बिल्कुल विपरीत धाराओं के राजनीतिक खेमों में अपने को खपा लेते हैं। शायद इसी विशेषता के चलते पहले बसपा और भाजपा के बाद सपा ने उन पर विश्वास जताया है। बसपा और भाजपा सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे। सपा में भी इसी उम्मीद से गए होंगे लेकिन इस बार मौसम का मिजाज समझने में विफल रहे। विधानसभा चुनाव हारे तो विधान परिषद में भेजे गए। राम चरित मानस पर विवादित बयान दिया। कुछ ही दिन में राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए।
विडंबना यह कि उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में इसी पार्टी पर ही सर्वाधिक हमले किए थे। सपा संस्थापक पर बेहिसाब अमर्यादित बयान देते रहे। अखिलेश यादव को अब तक का सर्वाधिक विफल मुख्यमन्त्री करार दिया था जिस पार्टी में रहे उसके अनुरूप अंदाज बदलते रहे। बसपा में थे तो बहिन जी की वंदना करते रहे। भाजपा में आए तो साँस्कृतिक राष्ट्रवाद का रंग दिखाई दिया। जिस पार्टी में रहे, उसके प्रति रहम दिल रहते हैं। शेष दो पार्टियों को साँप नाथ और नाग नाथ घोषित करते रहे। भाजपा सरकार में मंत्री रहे तो सपा को निशाने पर रखा। ऐसे लोगों के लिए विचारधारा वस्त्रों की भांति होती है,जिन्हें कभी भी बदला जा सकता है। ये खुद नहीं जानते कि कब और कहां इनका दम घुटने लगेगा,कब इनकी घर वापसी होगी,कब ये अपना घर छोड़ देंगे,आदि। ऐसे प्रत्येक अवसर के लिए इनके पास बयान तैयार रहते हैं। इनके माध्यम से अपनी मासूमियत छिपाने का प्रयास किया जाता है। इनको लगता है कि इनकी सभी बातों पर जनता विश्वास करेगी। ऐसा लगता है कि गरीबों, वंचितों, किसानों, दलितों, पिछड़ों का इनसे बड़ा कोई हमदर्द नहीं है। इस कारण ये सदैव बेचैन रहते हैं। इसके लिए बार बार पार्टी बदलने का कड़वा घूंट इन्हें पीना पड़ता है। ऐसे लोगों में विपरीत ध्रुवों को नाप लेने की क्षमता होती है। जिस पार्टी में जब तक रहते हैं, उसका गुणगान करते है। उसके नेतृत्व में आस्था व्यक्त करते हैं। उसकी नीतियों पर न्योछावर हो जाते हैं। भाजपा से इस्तीफा देने के कुछ समय पहले उन्होंने अपने मन्त्रालय से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण बयान दिया था। उनका कहना था कि पिछली सरकार में छत्तीस लाख श्रमिकों का पंजीयन व सात लाख को योजनाओं का लाभ मिला था। योगी सरकार ने साढ़े चार साल में एक करोड़ बीस लाख श्रमिकों का पंजीयन कराते हुए सतहत्तर लाख श्रमिकों को योजनाओं का लाभ दिलाया है। कोरोना काल में सरकार श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों के साथ खड़ी रही। मुफ्त राशन व धन लगातार वितरित हो रहा है। सामूहिक विवाह के आयोजन फिर शुरू होने जा रहे हैं। प्रदेश सरकार श्रमिक एवं उनके परिवार के कल्याण के लिए तथा उनके जीवन स्तर को उन्नतिशील बनाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए श्रम विभाग द्वारा श्रमिकों के लिए अठारह कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इस प्रकार के नेताओं के किस रूप और किस बयान पर विश्वास किया जाए?

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