साहित्य संगम पछुवादून ने की काव्य गोष्ठी आयोजित
विकासनगर। साहित्य संगम पछुवादून की ओर से बाबूगढ़ में आयोजित काव्य गोष्ठी में साहित्यकारों ने समसामयिक घटनाओं पर तंज कसते समाज को सही राह पर चलने की सीख दी। इसके साथ ही काव्य गोष्ठी में हास्य की फुहारें भी बरसीं। रविवार को आयोजित काव्य गोष्ठी की शुरुआत संगीता राजपूताना ने सरस्वती वंदना करते हुए पढ़ा कि ‘करुं वंदना सरस्वती मां, करम कर दो पधार के, नहीं धन धान्य की इच्छा, हम भूखे में ज्ञान के…। इसके बाद सरस्वती उनियाल ने सेना के जवानों को समर्पित कविता पाठ करते हुए कहा कि ‘जान की बाजी लगा दी, पर आंच न मां को आने दी, मार दिया या मर गए, एक इंच न भूमि जाने दी…, हेमचंद्र सकलानी ने आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने पर जोर देते हुए कहा कि ‘तुम दिया एक जलाओ जो सही, हम दीवाली मना ही लेंगे…। विमला भंडारी ने गढ़वाली कविता के माध्यम से प्रकृति के लिए सावन के महत्व की जानकारी देते हुए पढ़ा कि ‘सौंण की कुएड़ी आंदी, फुर फुल उड़ी की, रैंतेली डांड्यू मां फैली जांदू, यू उज्यालू सी…, नीलम शर्मा ने वात्सल्य प्रकट करते हुए कहा कि ‘तुमको मैं भूल न पाती हूं एक पल को भी, ये बातें तुमको कभी हिचकियां बताती हैं…, मनवर राणा ने विपरीत परिस्थितियों में भी आशावादी रहने की सीख देते हुए पढ़ा कि ‘जब भी दुख का आगमन होता है, तभी खुद का उद्घाटन होता है…। सुरेश भारती ने माहौल को श्रृंगारिक करते हुए कहा कि ‘कब कब नहीं वक्त के हाथों छला गया, मुहब्बत का जो दौर था अच्छा भला गया…, राशिद राही ने कहा कि ‘कोई दिल को जलाए जाता है, वार मुझपे चलाए जाता है…, कैफ रहबर ने कहा कि ‘दो झलक देखी सिर्फ हमारी, हलकी सी धूल देख के गंदा ही समझ लिया…। राजीव बडोनी ने कहा कि ‘सुनहरे कलम से लिखी जाएंगी इबारतें, इतिहास बन जाएंगी कुछ काली शरारती, हमने भी तो कुछ कदम नए बढ़ाएं हैं, धारा 370 हटाई, तिरंगे लहराएं हैं…। मदनपाल बिरला ने समाज में घट रही घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि ‘धर्म के नाम पर झगड़े मू्र्खता की निशानी है, देखो श्मशान, कब्रों की बस इतनी सी कहानी है…। इसके साथ ही नाथीराम देहाती, पवन भार्गव, मजाहिर खान, उर्मिला गौतम, डा. कामेश्वर प्रसाद, मजाहिर खान आदि ने भी अपनी कविताएं की प्रस्तुति दी।