Monday, April 29, 2024
उत्तराखंड

समान नागरिक संहिता का मतलब पूरे देश में एक समान कानून लागू करने से है: मिगलानी

 

हरिद्वार। भारतीय जागरूकता समिति के पदाधिकारियों ने बैठक कर समान नागरिकता कानून पर चर्चा की। समिति के अध्यक्ष एवं उच्च न्यायालय के अधिवक्ता ललित मिगलानी ने बैठक में समान नागरिक संहिता के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि समान नागरिक संहिता का मतलब पूरे देश में एक समान कानून लागू करने से है। कहने का अर्थ है कि देश में रहने वाले किसी भी धर्म, जाति और समुदाय के व्यक्ति के लिए एक समान कानून होना। दूसरे शब्दों में कहें तो यूनिफॉर्म सिविल कोड एक धर्मनिरपेक्ष कानून की तरह है, जो सभी धर्म के लोगों के लिए समान है और किसी भी धर्म या जाति के पर्सलन लॉ से ऊपर है। फिलहाल देश में मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय के अपने कानून हैं, तो हिंदू सिविल लॉ के अलग। अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। समान संहिता लागू होने के बाद विवाह, विरासत और उत्तराधिकार सहित विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानून सरल बन जाएंगे। जिसके परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे। चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे। जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा। इसके अलावा, इस कानून से संवेदनशील वर्ग को संरक्षण मिलेगा और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल मिलेगा। एडवोकेट ललित मिगलानी ने बताया कि अमेरिका, आयरलैंड, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश हैं, जिन्होंने समान नागरिक संहिता को लागू किया है। बैठक में नितिन गौतम, विकास प्रधान, विनय अरोड़ा, सचिन्द्र शाह, भानु राठी, विनायक गॉर्ड, शिवानी गॉर्ड, पूजा शर्मा, ललित मिगलानी, विक्रम सिद्धू आदि उपस्थित रहे।

 

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