सरयू तट पर बाबा भुनेश्वर नाथ महादेव के रूप में विराजमान
अयोध्या
सावन का महीना प्रकृति का महीना माना जाता है और प्रकृति से ही जुड़े भोलेनाथ की भक्ति के लिए भी यह महीना अनुकूल माना जाता है। ऐसे में भोले बाबा के भक्त अपने आराध्य की कृपा पाने के लिए उनके ज्योतिर्लिंग पर अभिषेक करते हैं। रामनगरी अयोध्या के मां सरयू के पावन तट पर सुशोभित सैकड़ों वर्षों से विराजमान बाबा भुनेश्वर नाथ की कृपा भक्तों को अनवरत प्राप्त होती रहती है और इसी सरयू तट पर विराजमान करतलिया बाबा हमेशा श्री राम नाम भक्ति में वह ओत प्रोत रहते थे। राम नाम के साथ बाबा का अनुराग भोलेनाथ में भी अटूट था और बाबा ने ही मां के तट पर स्थित शिवलिंग का शिरोचार्य किया और यह परंपरा निरंतर चलने लगी।
बाबा भुनेश्वरनाथ महादेव प्राचीनता की पुष्टि उस सतह से होती है जिस पर वह शिवलिंग स्थापित है और वर्षों पहले करतलिया बाबा ने सहेजा और उनके शिष्य सूर्यनारायण दास ने मंदिर का निर्माण करवाया और वर्तमान पीठाधीश्वर महंत बाल योगी रामदास महाराज ने बाबा भोले के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए धर्मशाला का निर्माण करवाया। मां सरयू की उत्पत्ति श्री हरि के आंसुओं से हुई है और सरयू तट पर विराजमान भुनेश्वर नाथ महादेव का नित्य प्रति श्रद्धालु भक्तगण मां सरयू के जल से अभिषेक करके पुण्य अर्जित कर रहे हैं। करतलिया बाबा आश्रम के महंत बाल योगी रामदास जी महाराज ने बताया की प्रभु श्री राम और भोले बाबा एक दूसरे को श्रेष्ठ मानते हैं और उनकी अभिन्नता शास्त्रों के साथ-साथ सिद्ध संत करतलिया बाबा ने साक्षात पहचानी है जो आज मां सरयू के तट पर बाबा भुनेश्वर नाथ महादेव के रूप में विराजमान है। रामचरितमानस में तुलसीदास जी महाराज ने कई बार प्रभु श्री राम और बाबा भोलेनाथ का वर्णन किया है और ऐसा माना जाता है कि अगर कोई राम जी का अपमान करके शिवजी को अपनाता है या शिव जी का अपमान करके राम जी को अपनाता है तो उसे किसी की भक्ति नहीं प्राप्त होती है। बल्कि दोनों आराध्य ऐसे भक्तों पर रुष्ट हो जाते हैं।