Saturday, May 4, 2024
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आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने तैयार की कालाजार की वैक्सीन, सफल रहा पहले चरण का ट्रायल, जल्द शुरू होगा ह्यूमन ट्रायल

वाराणसी……

भारत समेत एशिया, यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका में गंभीर रूप लेती कालाजार की बीमारी के खिलाफ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान काशी हिंदू विश्वविद्यालय (आईआईटी बीएचयू) एक आशा की किरण लेकर सामने आया है। आईआईटी बीएचयू स्थित स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग ने कालाजार की वैक्सीन तैयार की है। इस वैक्सीन का पहला चरण कामयाब हो चुका है। कुछ और परीक्षणों के बाद इस वैक्सीन का जल्दी ही ह्यूमन ट्रायल शुरू किया जाएगा। यह बड़ी उपलब्धि है। इस पहले चरण की सफलता के बाद उम्मीद बंधी है कि भारत के शोधकर्ता एक बार फिर दुनिया में अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाएंगे। मच्छरों से फैलने वाली कालाजार बीमारी अब तक चिकित्सा विज्ञान के लिए चुनौती बनी हुई है। इसका अब तक कोई कारगर उपचार नहीं खोजा जा सका है। उसके लिए संजीवनी यानी कि वैक्सीन आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों ने विकसित की है।

तीन सालों की मेहनत के बाद इसका वैक्सीन तैयार किया गया है। कालाजार के खिलाफ वैक्सीन के लिए सफल परीक्षण किया गया है। यह वैक्सीन कालाजार बीमारी का प्रमुख कारक लीशमैनिया परजीवी के खिलाफ संक्रमण की प्रगति को रोक देता है। इस बीमारी के खिलाफ मनुष्य के लिए विश्व बाजार में अभी तक कोई टीका उपलब्ध नहीं है। बीमारी का उपचार मुख्य रूप से कुछ मुट्ठी भर दवाओं पर निर्भर करता है, जो डब्ल्यूएचओ के पूर्ण उन्मूलन कार्यक्रम के लिए गंभीर चिंता का विषय है। ये टीका अब संजीवनी बनकर सामने आया है।

आईआईटी बीएचयू स्थित स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर विकास कुमार दुबे (कालाजार वैक्सीन प्रोजेक्ट हेड) और नेशनल पोस्टडॉक्टोरल फेलो डॉ सुनीता यादव का कहना है कि टीकाकरण संक्रामक रोगों से लड़ने का सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। वैक्सीन अणु हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र को रोगों से लड़ने के लिए प्रशिक्षित करता है। यह हमारे शरीर में कई प्रतिरक्षा कोशिकाओं को उत्तेजित करता है, जो एंटीबॉडी, साइटोकिंस और अन्य सक्रिय अणुओं का उत्पादन करते हैं जो सामूहिक रूप से काम करते हैं और हमें संक्रमण से बचाते हैं।

उन्होंने कहा कि लीशमैनियासिस के पूर्ण उन्मूलन के लिए एक टीका बेहद कारगर होगा। उन्होंने बताया कि इस टीके की रोगनिरोधी क्षमता का मूल्यांकन चूहों के मॉडल में प्री-क्लिनिकल अध्ययनों में किया गया था, जिसमें संक्रमित चूहों की तुलना में टीकाकृत संक्रमित चूहों के यकृत और प्लीहा अंगों में परजीवी भार में उल्लेखनीय कमी देखी गई थी। टीका लगाए गए चूहों में परजीवी के बोझ को साफ करने से वैक्सीन के सफलता की संभावना प्रबल हो जाती है और ये टीका सफल रहा। उन्होंने बताया कि पहला स्टेज पूरा हो चुका है और अब ह्यूमन ट्रायल शुरू होने वाला है।

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