समाज में क्रियाशील संगठनों, संस्थाओं की एक आकस्मिक बैठक संपन्न
देहरादून, —
उत्तराखंड की पर्वतीय भाषा बोली की दशा और दिशा को लेकर समाज में क्रियाशील संगठनों, संस्थाओं की एक आकस्मिक बैठक संपन्न हुई।
यहां सर्वे चैक स्थित एक रेस्टोरेंट में बैठक में उत्तराखंड की पर्वतीय भाषा बोली के विकास के लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत पर बल दिया गया । बैठक में प्रतिभाग करते हुए वरिष्ठ समाजसेवी, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, गैरसैंण राजधानी अभियान कर्मी एवम् 36 चारधाम एसोसिएट्स के प्रमुख कर्णधार सैनिक शिरोमणि मनोज ध्यानी ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तराखंड की अवाम जो पलायन कर तराई आदि में बस चुकी है जब तक अपनी मूल भाषा बोली को दैनिक व्यवहार में नहीं उतरती है, तब तक भाषा-बोली के विकास की बात एक कोरी कल्पना मात्र बनी रहेगी ।
इस अवसर पर मनोज ध्यानी ने सुझाव दिया कि क्षेत्रीय भाषा-बोली के विकास के लिए इसके प्रति प्राकृतिक रूप में आकर्षण पैदा किया जाना चाहिए । उन्होंने कहा कि सरकार के ऊपर निर्भर रहने से बेहतर है कि भाषा-बोली को समाजिक व्यवहार की दिनचर्या बनाई जाए। आधुनिक विज्ञान से लेकर गणित व अर्थशास्त्र तक विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषा बोली में विकसित किए जाने चाहिए ।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के वाणिज्य व व्यापार में भी क्षेत्रीय भाषा बोली अहम रूप से प्रयोग में की जानी चाहिए । इस अवसर पर पूर्व सैन्य अधिकारी सतीश सती ने पर्वतीय भाषा बोली के उत्थान को बेहद आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की पर्वतीय भाषा बोली में किया जाने वाला संवाद आत्मीयता का भाव संचारित करती हैं।
इस अवसर पर राज्य मान्यता पत्रकार सोहन सिंह रावत ने कहा कि पर्वतीय भाषा बोली के क्षेत्र में कार्य करने वाले पत्रकार व पत्रकारिता को जिस प्रकार का समर्थन सरकार द्वारा किया जाना चाहिए वह नहीं होता है। उन्होने पर्वतीय भाषा बोली के विकास के लिए प्रोत्साहन नीति को ठोस बनाने पर बल दिया। उत्तराखंड राज्य सरकार को भी सहभागिता आमंत्रण हेतु सौंपा जाएगा। अपणु खानपान,अपणु भाषा-बोली अभियान का श्रीगणेश 14 जनवरी को पर्वतीय सांस्कृतिक पर्व खिचड़ी संक्रांति (मकर संक्रांति) से प्रारंभ किया जाएगा।