यूपीए अध्यक्ष पद के लिए शिवेसना ने की शरद पवार के नाम की सिफारिश
मुंबई ——
विपक्षी दलों के संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के अध्यक्ष पद को लेकर शिवसेना ने बड़ा बयान दिया है। शिवसेना ने कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के गठबंधन यूपीए के नेतृत्व के लिए शिवेसना ने शरद पवार का समर्थन किया है। बीते कुछ हफ्तों से यूपीए अध्यक्ष के नाम पर विपक्षी दलों में बहस जारी है। फिलहाल कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष हैं। अगले साल जनवरी में सोनिया इस पद से हट जाएंगी। माना जा रहा है कि इसके बाद पवार यूपीए के अध्यक्ष बनेंगे। सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी ने पद पर बने रहने की अनिच्छा जाहिर की है। सोनिया का मानना है कि इस पद के लिए उपयुक्त नेता जल्द ही मिल जाएगा। अब माना जा रहा है कि शरद पवार यूपीए अध्यक्ष पद के सबसे मजबूत प्रत्याशी हैं। इसी मुद्दे पर शिवेसना के मुखपत्र के संपादकीय में भी पवार के यूपीए अध्यक्ष बनाए जाने की वकालत की गई है। यूपीए की तुलना एनजीओ से करते हुए सामना के संपादकीय में कहा गया है श्कांग्रेस के नेतृत्व में एक ‘यूपीए’ नामक राजनीतिक संगठन है। उस ‘यूपीए’ की हालत एकाध ‘एनजीओ’ की तरह होती दिख रही है। ‘यूपीए’ के सहयोगी दलों द्वारा भी देशांतर्गत किसानों के असंतोष को गंभीरता से लिया हुआ नहीं दिखता। ‘यूपीए’ में कुछ दल होने चाहिए लेकिन वे कौन और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है।
अखबार के संपादकीय में कहा गया है- शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को छोड़ दें तो ‘यूपीए’ की अन्य सहयोगी पार्टियों की कुछ हलचल नहीं दिखती। शरद पवार का एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है, राष्ट्रीय स्तर पर है ही और उनके वजनदार व्यक्तित्व तथा अनुभव का लाभ प्रधानमंत्री मोदी से लेकर दूसरी पार्टियां भी लेती रहती हैं।
कांग्रेस के भविष्य पर प्रश्न करते हुए मुखपत्र की संपादकीय में कहा गया है श्पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अकेले लड़ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी वहां जाकर कानून-व्यवस्था को बिगाड़ रही है। केंद्रीय सत्ता की जोर-जबरदस्ती पर ममता की पार्टी को तोड़ने का प्रयास करती है। ऐसे में देश के विरोधी दलों को एक होकर ममता के साथ खड़ा होने की आवश्यकता है। लेकिन इस दौरान ममता की केवल शरद पवार से ही सीधी चर्चा हुई दिखती है तथा पवार अब पश्चिम बंगाल जानेवाले हैं। यह काम कांग्रेस के नेतृत्व को करना आवश्यक है। कांग्रेस जैसी ऐतिहासिक पार्टी को गत एक साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष भी नहीं है। सोनिया गांधी ‘यूपीए’ की अध्यक्ष हैं और कांग्रेस का कार्यकारी नेतृत्व कर रही हैं। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। लेकिन उनके आसपास के पुराने नेता अदृश्य हो गए हैं। मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल जैसे पुराने नेता अब नहीं रहे।श् संपादकीय में लिखा गया- श्ऐसे में कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा? ‘यूपीए’ का भविष्य क्या है, इसको लेकर भ्रम बना हुआ है। फिलहाल, ‘एनडीए’ में कोई नहीं है। उसी प्रकार ‘यूपीए’ में भी कोई नहीं है, लेकिन भाजपा पूरी ताकत के साथ सत्ता में है और उनके पास नरेंद्र मोदी जैसा दमदार नेतृत्व तथा अमित शाह जैसा राजनीतिक व्यवस्थापक है। ऐसा ‘यूपीए’ में कोई नहीं दिखता। लोकसभा में कांग्रेस के पास इतना संख्याबल नहीं है कि उन्हें विरोधी दल का नेता पद मिले।श् अखबार में लिखा गया है- श्देश के लिए यह तस्वीर अच्छी नहीं है। कांग्रेस नेतृत्व ने इस पर विचार नहीं किया तो आनेवाला समय सबके लिए कठिन होगा, ऐसी खतरे की घंटी बजने लगी है। विरोधी दलों की हालत उजड़े हुए गांव की जमींदारी संभालने वाले की तरह हो गई है। यह जमींदारी कोई गंभीरता से नहीं लेता इसलिए ३० दिनों से दिल्ली की सीमा पर किसान फैसले की प्रतीक्षा में बैठे हैं। उजड़े हुए गांव की तत्काल मरम्मत करनी ही होगी।