Sunday, May 19, 2024
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भारत के बासमती चावल के दावे से पाक को डर, हारे तो धंधा हो जाएगा चैापट


नई दिल्ली

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को भारतीय सेना के शौर्य से भय रहता है पर अब एक नया डर उसके घर करगया है है वो है बासमती चावल के जीआई टैग को मान्यता देने के लिए यूरोपियन यूनियन में आवेदन करने पर। इस खबर से पड़ोसी देश पाकिस्तान में खासी हलचल मच गई है। उनको डर है कि अगर भारत के बासमती को दुनियाभर में पहचान मिल गई तो उनका धंधा चैपट हो जाएगा। एक पाकिस्तानी अखबार में एक चावल निर्यातक कंपनी के हवाले से कहा गया है, ष्यह सब ग्राहक के लिए ब्रैंडिंग का खेल है। अगर यह माहौल बन जाए कि बासमती चावल केवल भारत में पैदा होता है हमारे निर्यात को बड़ी तगड़ी चोट लगेगी।ष् भारत के मुकाबले पाकिस्तान का बासमती चावल महंगा बिकता है। वहां टेक्सटाइल्स के बाद बासमती चावल का ही सबसे ज्यादा निर्यात होता है। ऐसे में भारत के इस कदम से वहां के चावल निर्यातक बेहद घबराए हुए हैं।
ईयू के आधिकारिक जर्नल के अनुसार, भारत ने अपने यहां होने वाले बासमती चावल के जीआई टैग के लिए आवेदन किया है। जीआई टैग मिलने का मतलब यह होगा कि चावल की इस किस्म पर पूरा अधिकार भारत का होगा। भारत ने अपने आवेदन में कहा है कि श्बासमती एक लंबे दानों वाला चावल है जो कि भारतीय उप-महाद्वीप के एक खास भौगोलिक क्षेत्र में उगाया जाता है। जिस इलाके में इसकी खेती होती है, वह उत्तर भारत का हिस्सा है।श् भारत के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश के हर जिले में बासमती चावल की फसल तैयार होती है। इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ जिलों में भी बासमती उगाया जाता है।
जियोग्रैफिकल इंडेक्स टैग यानी जीआई टैग असल में किसी उत्पाद की शुरुआत के बारे में बताता है। इससे यह पता चलता है कि वह उत्पाद किस भौगोलिक इलाके से आया है। जीआई टैग के जरिए किसी उत्पाद की उन खूबियां का पता लगाया जा सकता है जो खासतौर से उस इलाके में होने वाले उत्पाद में होती हैं। पाकिस्तान में जीआई कानून तो मौजूद है लेकिन वह उतना फुलप्रूफ नहीं है। घरेलू स्तर पर जीआई के लिए बेहतर कानून होना चाहिए तभी वह ईयू जा सकता है। एक बार जीआई टैगिंग की व्यवस्था बन भी जाए तो सिंध और पंजाब प्रांतों की अनबन सुलझाना पड़ी चुनौती होगा। सबसे ज्यादा चावल उगाने वाले इन दोनों राज्यों का राजनीतिक नेतृत्व एक-दूसरे से छत्तीस का आंकड़ा रखता है।
दो दशक से भी ज्यादा पहले, अमेरिका में पैदा होने वाले चावल को बासमती बताकर रजिस्टर कराने की कोशिश हुई थी। तब वर्ल्ड ट्रेंड ऑर्गनाइजेशन में भारत और पाकिस्तान ने मिलकर अमेरिकी पेटेंट का विरोध किया था। दोनों देश जीत गए और फिर दोनों ही जगह, जीआई कानून बनाने की शुरुआत हुई। साल 2010 में भारत के सात राज्यों में उगने वाले बासमती चावल को जीआई टैग मिला। मध्य प्रदेश को इससे अलग रखा गया क्योंकि भारत को लगता है कि इससे विदेश में उसका दावा कमजोर पड़ सकता है। अब तक अंतरराष्ट्रीय अदालतों में बासमती चावल को लेकर भारत और पाकिस्तान आमने-सामने नहीं थे। मगर ताजा घटनाक्रम ने दोनों देशों को फिर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया है। पहले से ही बेहद खराब अर्थव्यवस्था से जूझ रहा पाकिस्तान अगर ईयू में दावा हार जाता है तो उसके लिए बड़ी परेशानी खड़ी हो जाएगी। यूरोप को वह हर साल करीब आधा बिलियन डॉलर का चावल एक्सपोर्ट करता है, इसपर तगड़ा असर होगा। इसके अलावा मिडल ईस्ट के बाजारों में भी पाकिस्तानी बासमती चावल की मांग घटने का पूरा अंदेशा है।

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