हाई कोर्ट का अहम फैसला- प्रमाण के बिना दूसरे विवाह के आरोप में शासकीयकर्मी को सेवा से बर्खास्त करना अनुचित
लखनऊ
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि प्रमाण के अभाव में महज दूसरा विवाह करने के आरोप में सरकारी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त किया जाना न्याय की मंशा के विपरीत है। अदालत ने इस विधि व्यवस्था के साथ एक पुलिसकर्मी के बर्खास्तगी आदेश को निरस्त करते हुए उसे सेवा में बहाल किए जाने का आदेश दिया है।
गौरतलब है पुलिसकर्मी के खिलाफ एक महिला ने खुद के साथ दूसरी शादी करने और इससे एक बच्चा होने का आरोप लगाया था। पुलिसकर्मी के खिलाफ शुरूआती जांच में महिला के इस आरोप वाले बयान के तहत उसको सेवा से बर्खास्त किया गया था। इसके खिलाफ उसने याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया। यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने रायबरेली जिले के बर्खास्त पुलिस हेडकांस्टेबल लीलाधर की याचिका पर दिया। इसमें याची ने रायबरेली के पुलिस अधीक्षक के तीन मई 2018 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसके तहत दूसरा विवाह करने के आरोप में उसे सेवा से बर्खास्त किया गया था।
याची ने इस आदेश को सेवा के हित लाभों के साथ निरस्त किए जाने की गुजारिश की थी। याची के खिलाफ शिकायतकर्ता एक महिला ने शुरूआती जांच में खुद के साथ दूसरी शादी करने और इससे एक बच्चा होने का आरोप लगाया था। याची ने इसके खिलाफ अपने जवाब में दूसरा विवाह के आरोप से पूरी तरह इंकार किया था। उधर सरकारी वकील ने याचिका का विरोध किया।
न्यायालय ने कहा कि याची के खिलाफ नियमित विभागीय जांच में द्वि-विवाह के आरोप को साबित करने वाली ऐसी कोई सामग्री या सबूत नहीं है। सिर्फ शुरूआती जांच में अधिकारी ने शिकायत करने वाली महिला के बयान के आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि याची के खिलाफ द्वि-विवाह का आरोप सिद्ध है, जो विधिपूर्ण नहीं था। अदालत ने फैसले में कई नजीरों का हवाला देकर बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया और तत्काल याची को सेवा में पुनः बहाल करने के निर्देश दिए।