Saturday, May 18, 2024
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ताइवान को नजदीक लाने की रणनीति पर आगे बढ़े अमेरिका और भारत, बौखलाया चीन

नई दिल्ली —
चीन ताइवान को लेकर पहले से ही काफी आक्रामक रहा है. लेकिन ताइवान के साथ दूसरे देशों के घनिष्ठ होते संबंधों ने उसकी यह आक्रामकता और चिंता दोनों को बहुत बढ़ा दिया हैं। उसकी आक्रामकता की सबसे बड़ी वजह, उसकी विस्तारवादी नीतियां रही हैं। चीन की यही विस्तारवादी नीति और उसकी आक्रामकता दुनिया को अब रास नहीं आ रही है। दुनिया के कई बड़े देश चीन के बढ़ते कदमों को थामने में लगे हैं। इसमें अमेरिका भी है। भारत भी उसका साथ दे रहा है। इन दोनों ने ही चीन को रणनीतिक दृष्टि से रोकने के लिए ताइवान को माध्यम बनाया है। वहीं दोनों ने ही आर्थिकतौर पर उसको कमजोर करने के लिए कई अन्य फैसले भी लिए हैं।
भारत और अमेरिका दोनों ने ही अपने यहां बीते कुछ समय से चीन के निवेश को कई क्षेत्रों में प्रतिबंधित कर दिया है। साथ ही कई चीनी एप को बंद किया गया है। इसके अलावा भारत ताइवान के साथ आईटी सेक्टर में आगे बढ़ रहा है। हालांकि जहां तक भारत की बात है तो भारत ने हालांकि ताइवान को एक आजाद राष्ट्र के तौर पर मान्यता नहीं दी है, लेकिन हाल के दिनों में उसके साथ नजदीकियां बढ़ाई हैं। अमेरिका की बात करें तो वो इस राह में भारत से कई कदम आगे है।
दोनों ही देश आर्थक के अलावा सैन्य क्षेत्र में काफी मजबूती के साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह चीन के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। गौरतलब है कि अमेरिकी रक्षा मंत्रलय पेंटागन ने ताइवान को 13500 करोड़ रुपए के हथियार बेचने का निर्णय लिया है, जिसके बाद चीन बुरी तरह से तिलमिलाया हुआ है। अमेरिका ने इसके तहत जिन चीजों को ताइवान को बेचने की बात की है उसमें मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम (एचआइएमएआरएस), स्टैंड ऑफ लैंड अटैक मिसाइल रेस्पांस (एसएलएएस-ईआर), एएस-110 सेंसर पोड, अत्याधुनिक तोपें, ड्रोन, हापरून एंटी-शिप मिसाइल भी शामिल की गई हैं। यह प्रक्रिया सितंबर से ही चल रही थी।
चीन इस बात से वाकिफ है कि ताइवान से संबंधों को मजबूत करने या हवा देने के पीछे एकमात्र मकसद उसको सबक सिखाना है। इसी वजह से उसकी बेचैनी बढ़ी हुई है। दरअसल, चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता आया है। वहीं ताइवान खुद को एक आजाद राष्ट्र बताता है। भारत की ही बात करें तो भारत ने हमेशा से ही क्षेत्र की स्थिरता और शांति को प्राथमिकता दी है। ताइवान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता न देना भी उसकी इसी नीति का हिस्सा रहा है। भारत नहीं चाहता है कि वह किसी भी तरह से चीन के साथ अपने रिश्तों को खराब करे।
हकीकत यह है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के आगे इसकी कोई परवाह नहीं करता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अलका आचार्य मानती हैं कि भारत को ताइवान के संबंधों को मजबूत बनाना चाहिए। ये वर्तमान की जरूरत भी है। हालांकि वह यह भी मानती हैं कि ताइवान का चीन को साधने के लिए इस्तेमाल करना मुश्किल है। ऐसा करने पर चीन भारत के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है। सीमित दायरे में रहते हुए भारत को यही रणनीति अपनानी चाहिए। प्रोफेसर अलका के मुताबिक अमेरिका भी काफी समय से ताइवान को अपने हक के लिए इस्तेमाल करने में लगा हुआ है। वहीं भारत केवल आईटी सेक्टर में चीन से अपनी निर्भरता को कम करने के लिए ताइवान का उपयोग कर रहा है, जो गलत नहीं है।
उल्लेखनीय है कि चीन दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जिसकी सीमाएं 14 देशों के साथ मिलती हैं। इसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, किग्रीस्तान, कजाकिस्तान, मंगोलिया, रूस, उत्तर कोरिया, वियतनाम, लाओस, म्यांमार, भूटान और नेपाल शामिल हैं। उसका अपने सभी 14 पड़ोसियों से सीमा को लेकर विवाद है। भारत के साथ उसका विवाद जगजाहिर है। इसके बाद रूस का नंबर आता है जिसकी सीमाएं 13 देशों के साथ मिलती हैं।

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