Sunday, May 19, 2024
देश

शाह सुलझा रहे मणिपुर मामला

पूर्वोत्तर भारत के राज्य मणिपुर मंे जातीय संघर्ष ने इसलिए चिंता में डाल दिया है क्योंकि इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट के अनुसार इसके पीछे देश विरोधी ताकतों का हाथ है। इसी के बाद केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मणिपुर का मामला सुलझाने का दायित्व स्वयं संभाला है। उन्हांेने पांच सूत्रीय फार्मूला भी बना लिया है। राज्य मंे इसी महीने की 3 तारीख को आल ट्राइबल्स स्टूडेन्ट्स यूनियन ने जब आदिवासी एकजुटता रैली आयोजित की थी, तभी जनजातीय समूहों और दूसरे समूहों के बीच हिंसक झड़पें हुई थीं। इस हिंसा मंे 80 लोगों की मौत हो गयी और 40 हजार लोग अपने घर छोड़ने पर मजबूर हुए हैं। हिंसक जातीय संघर्ष मंे शामिल आदिवासी समुदायों के नेताओं से गृहमंत्री अमित शाह ने राजनीतिक समाधान निकालने का वादा किया है। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच आरक्षण को लेकर विवाद चल रहा है। चीफ आफ डिफेन्स का हालांकि यह बयान राहत देने वाला है कि इस विवाद के पीछे उग्रवाद नहीं है। हालात सामान्य होने मंे वक्त लगेगा। हिंसा की जांच सीबीआई कर रही है। उम्मीद करनी चाहिए कि गृहमंत्री अमित शाह इस विवाद का बेहतर समाधान निकालने मंे सफल होंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंसा प्रभावित मणिपुर की अपनी यात्रा के दूसरे दिन महिलाओं (मीरा पैबिस) सहित समाज के सभी वर्गों के साथ विचार-विमर्श किया। साथ ही गृह मंत्री ने सुरक्षा अधिकारियों के साथ बैठकें भी बुलाईं और क्षेत्र में स्थिरता वापस लाने के लिए जमीनी स्थिति और बलों द्वारा किए जा रहे प्रयासों की समीक्षा की। गृह मंत्रालय के प्रतिनिधिमंडल के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार केंद्र मणिपुर में समाज के सभी वर्गों तक पहुंचने और विभिन्न समुदायों के बीच काम करने के लिए प्रयास कर रहा हैं। उनके अनुसार क्षेत्र में शांति और स्थिरता वापस लाने के लिए केंद्र तीन आयामी दृष्टिकोण अपना रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई आतंकवादी अपने शिविरों से दूर चले गए हैं, उन्हें पकड़ने या उन्हें गिरफ्तार करने और यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि वे अपने शिविरों की सीमाओं में वापस चले जाएं। सुरक्षा बलों द्वारा अपील की जा रही है कि अगर किसी के पास हथियार है तो वो वापिस कर दें। अधिकारी ने कहा कि उनके अनुसार प्रशासन को सभी विस्थापितों के पुनर्वास के निर्देश दिए गए हैं। हिंसा के कारण जिन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है, वे सभी वापस जाना चाहते हैं, इसलिए प्रशासन को निर्देश दिए गये हैं की उन सभी लोगों की हर संभव मदद की जाए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मणिपुर कैबिनेट के साथ बैठक में पांच अहम फैसले लिये गए। सूत्रों के अनुसार, इन निर्णयों को शांति प्रक्रिया के तहत पूरे राज्य में तुरंत लागू किया जाएगा। इन फैसलों से राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद मिलने की उम्मीद है, जहां हिंसा भड़कने के बाद 3 मई से कर्फ्यू लगा हुआ है और इंटरनेट को निलंबित कर दिया गया है। सूत्रों ने कहा कि अमित शाह ने कुकी आदिवासी नेताओं के साथ एक बैठक में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा हिंसा की जांच की भी बात कही है। मंत्रिपरिषद की बैठक में कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने, राहत कार्यों में तेजी लाने, जातीय संघर्ष में मारे गए लोगों के परिवारों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने और अफवाहों को दूर करने के लिए बीएसएनएल की टेलीफोन लाइन फिर से खोलने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया। सूत्रों ने कहा कि अमित शाह ने अधिकारियों को राज्य में शांति भंग करने वाली गतिविधियों से सख्ती से निपटने का निर्देश भी दिया है।
इंफाल पहुंचने के बाद अमित शाह ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के मंत्रिमंडल के अलावा, राज्यपाल, सुरक्षा बलों और प्रशासन के अधिकारियों से भी मुलाकात की। उन्होंने इंफाल में एक सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता की और राजनीतिक नेताओं से राज्य में सामान्य स्थिति और सांप्रदायिक सद्भाव लाने में मदद करने की अपील की। उन्होंने कहा मणिपुर की शांति और समृद्धि हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है और उन्हें शांति भंग करने वाली किसी भी गतिविधि से सख्ती से निपटने का निर्देश दिया। आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य के लिए 10 आदिवासी विधायकों की मांग के संदर्भ में अमित शाह ने कहा कि मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता किसी भी कीमत पर प्रभावित नहीं होगी।
मणिपुर की जनसंख्या लगभग 30-35 लाख है। यहां तीन मुख्य समुदाय हैं।।मैतई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। मैतई मुसलमान भी हैं। जनसंख्या में भी मैतई ज्यादा हैं। नगा और कुकी ज्यादातर ईसाई हैं। नगा और कुकी को जनजाति में आते हैं। राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करें तो मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक मैतई समुदाय से हैं। बाकी 20 नगा और कुकी जनजाति से आते हैं। अब तक हुए 12 मुख्यमंत्रियों में से दो ही जनजाति से थे। मणिपुर की भौगोलिक संरचना विशिष्ट है। मणिपुर एक फुटबॉल स्टेडियम की तरह है। इसमें इंफाल वैली बिल्कुल सेंटर में प्लेफील्ड है और बाकी चारों तरफ के पहाड़ी इलाके गैलरी की तरह हैं। मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग पर मैतेई समुदाय का दबदबा है। ये समुदाय इम्फाल वैली में बसा है। बाकी 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाकघ्े में प्रदेश की मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इन पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच विवाद काफी पुराना और संवेदनशील है। मैतई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका भी डाली हुई है। मैतई समुदाय की दलील है कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था और उससे पहले मैतेई को यहाँ जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। इनकी दलील है कि इस समुदाय, उनके पूर्वजों की जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए मैतेई को जनजाति का दर्जा जरूरी है। समुदाय ने 2012 में अपनी एक कमेटी भी बनाई थी जिसका नाम है शिड्यूल ट्राइब डिमांड कमिटी ऑफ मणिपुर यानी एसटीडीसीएम। इनका कहना है कि मैतेई समुदाय को बाहरी लोगों के अतिक्रमण से बचाने के लिए एक संवैधानिक कवच की जरूरत है। वे कहते हैं कि मैतेई को पहाड़ों से अलग किया जा रहा है जबकि जिन्हें जनजाति का दर्जा मिला हुआ है, वे पहले से ही सिकुड़ते हुए इंफाल वैली में जमीन खरीद सकते हैं।
उधर, अन्रू जनजातियां हैं, वे मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रही हैं। इन जनजातियों का कहना है कि मैतई जनसंख्या में भी ज्यादा हैं और राजनीति में भी उनका दबदबा है। जनजातियों का कहना है कि मैतेई समुदाय आदिवासी नहीं हैं। उनको पहले से ही एससी और ओबीसी आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का आरक्षण मिला हुआ है और उसके फायदे भी मिल रहे हैं। उनकी भाषा भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है और संरक्षित है। ऐसे में मैतेई समुदाय को सब कुछ तो नहीं मिल जाना चाहिए। अगर उन्हें और आरक्षण मिला तो फिर बाकी जनजातियों के लिए नौकरी और कॉलेजों में दाखिला मिलने के मौके कम हो जाएंगे। मैतई समुदाय को भी पहाड़ों पर भी जमीन खरीदने की इजाजत मिल जाएगी और इससे उनकी जनजातियां और हाशिये पर चली जाएंगी।
इस प्रकार मणिपुर की समस्या सामाजिक और राजनीतिक है।

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