Sunday, May 19, 2024
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वैज्ञानिक काल गणना में अध्यात्म

भारतीय नव वर्ष का शुभारंभ प्रकृति की नव चेतना के साथ होता है। वृक्ष नए रूप में पल्लवित होते है। प्रकृति सर्वत्र उत्साह का संचार करती है। नव दुर्गा की उपासना से माहौल भक्तिमय हो जाता है। दुनिया की सर्वाधिक प्राचीन व वैज्ञानिक काल गणना का अविष्कार भारत में ही हुआ था। इसमें समय के न्यूनतम अंश का भी समावेश है। प्रलय के बाद भी यह काल गणना निरन्तर जारी रहेगी,प्रासंगिक रहेगी। इसके नव वर्ष में प्रकृति भी नए रूप में परिलक्षित होती है। यह संधिकाल आध्यात्मिक ऊर्जा को प्राप्त करने का अवसर होता है। इसमें पाश्चात्य नव वर्ष की तरह देर रात का हंगामा नहीं होता। भारतीय काल गणना में परमाणु से लेकर कल्प तक का विचार है। इसलिए यह पूर्णतया वैज्ञानिक है। भारतीय नव वर्ष का प्रथम दिन अपने में व्यापक सन्देश देने वाला होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही पृथ्वी माता का प्रादुर्भाव हुआ। इसी के साथ ब्रह्मा जी ने काल गणना का श्री गणेश किया। नवरात्र का प्रथम दिवस मत्स्यावतार, प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक, धर्म राज युधिष्ठिर का राज्य तिलक इसी दिन हुआ था। यह सभी अवसर भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने वाले है। पृथ्वी के प्रादुर्भाव के एक अरब सत्तानबे करोड़ उनतीस लाख उनचास हजार एक सौ बाइस वर्ष हो चुके है। इस अवधि में एक पल का भी अंतर नहीं हुआ है। यह भारतीय वैज्ञानिक काल गणना की विशेषता है। इसकी बराबरी के विषय में दुनिया की अन्य काल गणना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ईसा पूर्व और ईसा बाद का प्रचलन तथ्य परक नहीं है। प्राचीन भारत के गुरुकुल अनुसन्धान के केंद्र हुआ करते थे।
कालगणना में क्रमशः प्रहर, दिन-रात, पक्ष, अयन,संवत्सर, दिव्य वर्ष, मन्वन्तर, युग, कल्प और ब्रह्मा की गणना की जाती है। हमारे ऋषियों ने चक्रीय अवधारणा का सुंदर वर्णन किया। काल को कल्प, मन्वंतर और युग में विभाजित किया। चार युग बताए। सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। इनकी चक्रीय व्यवस्था चलती है। अर्थात ये शाश्वत रूप से आते जाते है। इसकी पुनरावृत्ति होती रहती है।
इसके अनुरूप इस समय ब्रह्मा की आयु के दूसरे खंड में, श्वेतावाराह कल्प में,वैवस्वत मन्वंतर में अट्ठाईसवां कलियुग चल रहा है। इस कलियुग की समाप्ति के पश्चात चक्रीय नियम में पुनः सतयुग आएगा। वस्तुतः यह अवधारणा ही प्राकृतिक है। इसमें पिंड व ब्रह्मांड का भी विचार है। अंतर व बाह्य चेतना परम् सत्ता से संबन्ध है जो प्रत्यक्ष दिखता है,वही पूर्ण सत्य नहीं है।
भारतीय काल गणना आधुनिक खगोल विज्ञान के लिए भी चमत्कार से कम नहीं। क्योंकि इसका आविष्कार उस समय हुआ था जब दुनिया में अन्यत्र मानव सभ्यता नहीं थी। इस काल आकलन ईसापूर्व जैसी परिधि में संभव ही नहीं है। यह काल गणना पृथ्वी के प्रादुर्भाव से प्रारंभ होती है। यह शाश्वत है, चारों युग समाप्त होंगे,नए युगों का चक्र प्रारंभ होगा, लेकिन यह काल गणना तब भी इसी गति से चलती रहेगी। इसमें एक पल का भी अंतर नहीं आएगा. इसके लिए प्रकृति को समझना होगा। प्रकृति के निकट जाना पड़ेगा। जीवन शैली में उसी के अनुरूप परिवर्तन करना होगा। कर्म और प्रारब्ध या भाग्य का यह अविनाशी चक्र निरंतर चलता रहता है। अपने विचारों में परिवर्तन कर श्रेष्ठ कर्म करना चाहिए। जिससे तन मन धन और संबंधों में सदा के लिए सुख और शांति पूर्ण जीवन रहे। नव वर्ष का शुभारंभ नवदुर्गा से होना भी विलक्षण है। यह आध्यात्मिक चेतना का अवसर है। नवरात्र शक्ति आराधना का आध्यात्मिक पर्व है। इस समय प्रकृति में विविध रंग होते है। मां दुर्गा के इस पावन पर्व में रंगो का बहुत अधिक महत्व होता है। नवरात्र में नौ दिन दुर्गा मां के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा शैलपुत्री माता हैं। यह पर्वतराज हिमालय के घर में जन्मी थीं जिसके कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री माता की पूजा के दौरान पीले रंग के वस्त्रों का महत्व है। नवदुर्गाओं में दूसरी माता ब्रह्मचारिणी हैं।
ब्रह्मचारिणी माता की पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है। इस दिन हरे रंग के वस्त्र ठीक रहते है। मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा है। नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। चंद्रघंटा माता की पूजा के दौरान स्लेटी रंग का विधान है। मां दुर्गा की चौथी शक्ति कुष्मांडा माता हैं। कुष्मांडा माता के आठ भुजाएं हैं। नवरात्र के चौथे दिन कुष्मांडा मां की पूजा की जाती है। इस दिन नारंगी रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होता है। मान्यता है कि मां कुष्मांडा को नारंगी रंग प्रिय है। पांचवी शक्ति स्कंदमाता हैं। स्कंदमाता अपने भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। इस दिन सफेद रंग के वस्त्र शुभ होते है।माता कात्यायनी को अमरकोष में पार्वती का दूसरा नाम बताया गया है। नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी माता की पूजा की जाती है। कात्यायनी और दुर्गा माता दोनों को लाल रंग काफी प्रिय है।
कालरात्रि माता दुर्गा माता की सांतवी शक्ति है। कालरात्रि माता को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा,चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। देवी के इन रूपों से सभी राक्षस भूत, प्रेत, पिसाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। इनकी पूजा के समय नीले वस्त्र धारण करने चाहिए। महागौरी मां दुर्गा की आठवी शक्ति है। नवरात्र के आठवें दिन महागौरी माता की पूजा की जाती है। इनको गुलाबी रंग प्रिय है। सिद्धिदात्री माता मां दुर्गा की नौवी और अंतिम शक्ति है। नवरात्र के आखिरी दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इस दिन बैंगनी वस्त्रों को शुभ माना जाता है। यह प्रकृति के निकट होने का मनोवैज्ञानिक सन्देश है। (हिफी)
दुर्गा सप्तशती के कुछ विशेष मंत्र
किसी भी मंत्र के जप से एकाग्रता बढ़ती है,मन शांत होता है और सकारात्मक अनुभूति होती है। मंत्र के शब्दों में निहित ऊर्जा का मंत्र करने वाले पर विशिष्ठ प्रभाव होता है। मंत्र नकारात्मक भावनाएं जैसे क्रोध, ईर्ष्या, घृणा इत्यादि को दूर करने में मदद करते हैं।
कार्यबाधा निवारण के लिए-
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
संकट से मुक्ति के लिए-
रक्तबीजवधे देवी चण्डमुण्ड विनाशिनी।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
व्याधिमुक्ति के लिए-
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
शीघ्र विवाह के लिए-
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्।
तारिणी दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।
रोगों से मिलती है मुक्ति-
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां, त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

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