Friday, May 17, 2024
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बिहार में भी भाजपा का डंका

 

लोकसभा चुनाव के पहले ये आखिरी चुनाव था जिसमें बिहार की तमाम राजनीतिक पार्टियों को अपने वोट बैंक के आकलन का मौका मिला है इसकी तस्वीर कुढ़नी उपचुनाव परिणाम में दिखी है।
विपक्षी दल जब तक अपने प्रमुख वोट बैंक का बिखराव नहीं रोक पाएंगे, तब तक वे भाजपा का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। बिहार मंे इससे पहले गोपालंज की सीट पर उपचुनाव में राजद प्रत्याशी को पराजय मिली थी और भाजपा ने सीट पर कब्जा कर लिया था। इस बार कुढ़नी विधानसभा सीट पर भी विपक्ष के वोट बंट गये। महागठबंधन ने यहां पर समझौते के तहत जद(यू) को यह सीट दी थी। जद(यू) ने मनोज कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया था। सहनी वोटों के साथ ही मुस्लिम वोटों का बंटवारा भी हुआ। एआईएमआईएम के असदउद्दीन ओवैसी ने भी प्रत्याशी उतारा था। इसी का नतीजा निकला कि भाजपा प्रत्याशी केदार गुप्ता ने मनोज कुशवाहा को 3645 मतों से पराजित कर दिया है। भाजपा प्रत्याशी केदार प्रसाद गुप्ता को 76653 मत मिले हैं जबकि जद(यू) प्रत्याशी मनोज कुशवाहा को 73008 मत ही मिल पाये। इस प्रकार 4000 से कम वोटों की यह पराजय विपक्षी दलों के वोटों के बंटवारे का ही नतीजा है। इसी के साथ भाजपा ने बिहार मंे नीतीश कुमार को जवाब दिया है कि राज्य मंे ‘कमल’ नीतीश के बगैर भी खिल सकता है। ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी को ही तीन हजार के करीब मत मिले हैं। लोकसभा चुनाव से पहले कुढ़नी विधनसभा उपचुनाव को बिहार की राजनीति में सेमीफाइनल माना जा रहा था। इस विधानसभा क्षेत्र से राजद विधायक रहे अनिल सहनी को एमपी-एमएलए कोर्ट से अयोग्य ठहराए जाने के कारण उपचुनाव हुआ।
कुढ़नी विधान सभा उपचुनाव के लिए मतदान समाप्त होते ही चुनाव लड़ रही पार्टियों की तरफ से जीत हार के दावे भी शुरू हो गए थे। इसके साथ ही कुढ़नी चुनाव ने कई ऐसे संकेत दिए हैं जो आने वाले समय में बिहार की सियासत पर असर डाल सकते हैं। दरअसल, माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के पहले ये आखिरी चुनाव है जिसमें बिहार की तमाम राजनीतिक पार्टियों को अपने वोट बैंक के आकलन का मौका मिला है इसकी तस्वीर कुढ़नी उपचुनाव परिणाम में दिखी है। बीजेपी ने कुढ़नी में वैश्य समाज से आने वाले केदार गुप्ता को मैदान में उतारा था जिन्होंने अपने व्यवहार से लोगों के बीच अच्छी पैठ बना रखी है। इसका फायदा उन्हें पूरे चुनाव में मिलता भी दिखा है। वहीं बीजेपी के समर्थन में सवर्ण वोटरों का बड़ा समूह जाता दिखा और वैश्य वोटर पूरी तरह एकजुट दिखा। यह भी कहा जाता है कि बीजेपी को फायदा मिला दलित वोटरों का जिन्होंने शराबबंदी की वजह से नाराज होकर बीजेपी के समर्थन में ठीक ठाक वोट किया है। महागठबंधन ने जदयू की तरफ से मनोज कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया था जिन्हें लेकर कुढ़नी में उनके व्यवहार की वजह से मतदाताओं को मनाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यह सिलसिला पूरे चुनाव तक चला और पूरे चुनाव मनोज कुशवाहा मतदाताओं से माफी मांगते दिखे। मनोज कुशवाहा के प्रति नाराजगी के बीच महागठबंधन ने संयुक्त रूप से चुनाव प्रचार की शुरुआत की और सबसे पहले अपने कोर वोटर एमवाई मुस्लिम यादव और लव कुश यानी कुर्मी-कोयरी वोटर को एकजुट करने की कोशिश की। चुनाव में इसका असर भी काफी हद तक दिखा, लेकिन ये समीकरण इतना मजबूत नहीं था कि सिर्फ इसकी बदौलत जीत मिल जाए। महागठबंधन ने बीजेपी के कोर वोटर यानी सवर्ण में भूमिहार और राजपूत को तोड़ने की पूरी कोशिश की और इस जाति के बड़े नेताओं को कैंप भी कराया। इसका कुछ हद तक फायदा भी मिला, लेकिन उतना नहीं जितनी उम्मीद थी। भूमिहार वोट जो कुढ़नी में निर्णायक माना जाता है, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने उन्हें अपनी पार्टी के पाले में करने में पूरी ताकत झोंक दी। इसका असर ये हुआ कि बहुत तो नहीं, लेकिन भूमिहार वोट को जदयू में लाने में कुछ हद तक सफल दिखे। महागठबंधन को शराबबंदी की वजह से दलित वोटरों का अच्छा खासा नुकसान हुआ। सहनी वोटरों की नाराजगी भी दिखी क्योंकि राजद ने सहनी उम्मीदवार का टिकट काट जदयू को ये सीट दे दी थी। वहीं अतिपिछड़े मतदाताओं में भी बीजेपी और जदयू में बंटवारा साफ-साफ दिखा। असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने भी कुछ मुस्लिम वोट काटे, लेकिन उतने नहीं जितना गोपालगंज में झटका लगा था। जाहिर है इसका फायदा भाजपा को मिला है।
अति पिछड़े वोटरों में भी बीजेपी ने सेंध लगाई है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी को सहनी मतदाताओं ने उतनी संख्या में वोट नहीं किया है जितनी की उम्मीद थी। मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने सहनी वोटों का ठीक ठाक संख्या में नुकसान किया है। वहीं भूमिहार वोटों में भी कुछ नुकसान हुआ जो वीआईपी और जदयू में ठीक ठाक जाता दिखा।
मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने नीलाभ कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया और इस पार्टी की पूरी नजर भूमिहार और सहनी वोटरों पर थी। उम्मीद थी की इन दोनों ही वोट बैंक में वीआईपी बड़ी सेंध लगाएगी। वीआईपी ने सेंध भी लगाई, लेकिन उतनी नहीं जितनी के दावे किए जा रहे थे। दरअसल, दोनों मिलाकर लगभग सत्तर से अस्सी हजार वोट हैं, जिनमें लगभग 20 प्रतिशत के आसपास वोट कटे हैं।
ओवैसी की एआईएमआईए ने स्थानीय गुलाम मुर्तजा अंसारी को मैदान में उतारा था जो अंसारी बिरादरी से आते हैं। एमआईएम को उम्मीद थी की गोपालगंज वाला खेल कुढ़नी में भी करेंगे, लेकिन वो सफल होती नहीं दिखी। मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में महागठबंधन में जाते दिखे। उम्मीदवार ने अंसारी वोट काटा और कुछ जगहों पर अन्य मुस्लिम वर्गों के भी वोट मिले। मुस्लिम वोटों में बिखराव न हो इसको लेकर महागठबंधन के मुस्लिम नेताओं ने काफी मेहनत भी की थी। कुढ़नी में मुकाबला बेहद कड़ा था और ऐसे में कुछ हजार वोटों का नुकसान महागठबंधन की उम्मीदों को झटका लगा गया है।

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