कलियर दरगाह में आने वाले जायरीनों के लिए अकीदत का केन्द्र है दरगाह परिसर में खड़ा गूलर का पेड़, देश विदेश में है प्रसिद्ध
रुड़की
आस्था की नगरी पिरान कलियर आने वाले जायरीनों के लिए हमेशा अकीदत का केन्द्र रहा दरगाह परिसर में खड़ा गूलर का पेड़ खास अहमियत रखता है, प्राचीन मान्यताओं के अनुसार हजरत मख्दूम अलाउददीन अली अहमद साबिर पाक ने गूलर के पेड़ के नीचे खड़े होकर ही बरसों खुदा की इबादत की थी, भोजन के नाम पर हजरत साबिर साहब गुलर ही खाते थे। गुलर के पेड़ की अहमियत को दर्शाती एक दास्तान एक बार हजरत साबिर साहब के पीरो मुर्शिद बाबा फरीद गंज शकर के पाक पटटन स्थित आवास से जो अब पाकिस्तान में है, से कव्वाल आए थे, पहले उन्होंने हजरत निजामुददीन औलिया देहलवी की खानकाह में कलाम पेश किए, कव्वालों के कलाम महबूबे इलाही हजरत निजामुददीन औलिया को इस कदर पसंद आए कि उन्होंने कव्वालों को बेशकीमती हीरे मोती दिए, जिस पर कव्वाल बेहद प्रभावित हुए, उन्हें उम्मीद जगी कि कलियर से उन्हें और ज्यादा कीमती तोहफे हासिल होगे, दिल में उम्मीद की शमां रोशन किए कव्वाल कलियर पहुंचे और हजरत साबिर साहब के रूबरू अपने कलाम पेश किए तो साबिर साहब ने खुश होकर कव्वालों को गूलर के पेड़ से गूलर तोडकर बतौर इनाम दिए, कव्वालों को गूलर जैसी मामूली चीज मिलने से गहरी मायूसी हुई। वापसी में जब कव्वाल पाक पटटन पहुंचे तो बाबा फरीद ने कव्वालों से पूछा कि मेरे साबिर ने क्या दिया है, तो कव्वालों ने उपेक्षित भाव से उनके सामने गूलर की पोटली खोलकर रख दी, गूलर देखते ही बाबा फरीद वज्द में आ गए और उन्होंने बड़ी अकीदत से गूलरों को उठाकर आंखों से लगा लिया और हजरत मख्दमू अलाउददीन अली अहमद साबिर की हम्दो सना पेश की, इस माजरे को देखकर कव्वालों को सख्त हैरत हुई, तब उन्हें गूलर की अहमियत का अहसास हुआ, आज भी दरगाह साबिर साहब में आने वाले जायरीन बतौर तबर्रूक गूलर ले जाना नहीं भूलते, मान्यता है कि जिनके यहां सन्ताने नहीं होती या लाइलाज बीमारी का शिकार होते हैं उन्हें गूलर का सेवन करने से सन्तान प्राप्त हुई और बीमारों को बीमारियों से छुटकारा हासिल हुआ। दरगाह परिसर में जो गूलर मुख्य दरवाजे से गुजरने पर बाएं हाथ पर स्थित है उस पर संगमरमर का पत्थर लगा है, जिस पर हर वक्त चिराग जले रहते हैं, अकीदतमंद अपने दुख दर्द की दास्तान एक अर्जी में लिखकर उस गूलर पर टांग देते हैं, उन्हें यकीन होता है कि साबिर साहब उनकी अर्जी में लिखे दुख दर्द दूर करेंगे। वही जालंधर से आए एक जायरीन महेंद्र पाल ने बताया कि वह कलियर दरगाह में करीब 40 से 50 बार आ चुके हैं और उनकी मुरादें भी पूरी होती हैं, उन्होंने बताया कि उनके पास रहने के लिए घर नहीं था तो वह कलियर आए थे यहां पर उन्होंने मन्नत मांगी जिसके बाद उन्हें घर मिल गया। वही हरियाणा के कैथल से आए गौरव नाम के एक जायरीन ने बताया कि वह साबिर पाक से करीब पिछले 10 सालों से जुड़े हुए हैं और वह यहां पर अपनी मन्नतें लेकर आते हैं जो पूरी होती हैं, हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया की उनकी ऐसी कौन सी मुरादे हैं जो पूरी हुई हो, उन्होंने कहा कि कुछ बातें बताने के लिए नहीं होती। वहीं दरगाह खादिम इमरान साबरी ने बताया कि इस गूलर को दूर दराज से जायरीन लेने के लिए आते हैं, गूलर का तबर्रुक (प्रशाद) इस लिए कीमती माना जाता है कि साबिर पाक ने इस पेड़ को पकड़ कर तपस्या की थी, तो अल्लाह ने इसमें ऐसी तासीर रखी कि जिसके यहां संतान नहीं होती वो इस तबर्रुक को खा ले तो उसके यहां संतान हो जाती है, ये साबिर पाक की दुआओं का सदका है।