Sunday, May 12, 2024
परिचय

कितने रहस्यमय हो चंदा मामा

आकाश में दूधिया रोशनी बिखेरता चन्द्रमा जब पूर्णिमा को अपनी सम्पूर्णता मंे होता है तो सचमुच चांद जैसे चेहरे की उपमा सटीक लगती है। यह चंद्रमा पृथ्वी के साथ ही नहीं जुड़ा है बल्कि अन्य ग्रहों के पास भी है। शनि का भी एक चंद्रमा है जिसके बारे मंे कहा जाता है कि उस पर वायुमंडल मौजूद है। उसकी कुछ प्रक्रियाएं हमारी पृथ्वी की प्रक्रियाओं से मिलती-जुलती हैं। हमारी पृथ्वी के चंद्रमा मंे भी कई रहस्य छिपे हैं। चन्द्रमा का जो भाग पृथ्वी की तरफ है, उसमंे कभी ज्वालामुखी धधका करते थे। वैज्ञानिकों को उसके धरातल के परीक्षण से यह पता चला है। इसके दक्षिणी ध्रुव मंे तो विशाल टकराव के संकेत मिलते हैं। चंद्रमा के दो अलग-अलग हिस्सों का कारण क्षुद्र ग्रह का टकराव ही माना जाता है।
पृथ्वी के बाहर जीवन के संकेत मिलने की सबसे ज्यादा गुंजाइश सौरमंडल के बड़े ग्रहों के चंद्रमाओं में है। शनि के सबसे बड़े ग्रह टाइटन में भी पृथ्वी से मिलती जुलती कई विशेषताएं हैं। टाइटन सौरमंडल का इकलौता ऐसा चंद्रमा है जिसका घना वायुमंडल है यहां पृथ्वी जैसे मौसम के हालत जैसे मीथेन की बारिश, नदियां और झीलें भी देखने को मिलती हैं। नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने टाइटन में रेत के टीले की मौजूदगी की व्याख्या करने का प्रयास किया है। यह प्रक्रिया पृथ्वी की तरह ही पाई गई है।
टाइटन में ऊंचे-ऊंचे रेत के टीले रहस्य का विषय थे। पृथ्वी पर रेत के टीले अजैविक सिलिकेट के बने होते हैं, लेकिन टाइटन की रेत का रसायन शास्त्र थोड़ा अलग है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ग्रहभूवैज्ञानिक मैथ्यू लैपोत्रे की अगुआई में हुए इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि टाइटन पर अवसाद यांत्रिकी तौर पर कमजोर जैविक दानों से बने होते हैं जिनका तेजी से घर्षण होता है और वे धूल में बदल जाते हैं। इस तेजी से होने वाले घर्षण का मतलब है कि समय के साथ, टाइटन के टीलों में रेत के कण और महीन से महीन होते जाते हैं जब तक कि वे धूल में न बदल जाएं। यह हलकी धूल इतनी पतली हो जाती है जिससे वह हवा में उड़ जाती है और विशाल टीले बनाने में सक्षम नहीं रह जाती है। ऐसे में विशाल टीलों का अस्तित्व कायम कैसे रह सकता है यह एक बड़ा सवाल है। लैपोत्रे बताते हैं कि जैसे ही कण हवा में जाते हैं कण आपस में और सतह से ज्यादा टकराते हैं। इन टकरावों से दानों का आकार समय के साथ कम होता जाता है। लेकिन फिर भी टाइटन पर बड़े-बड़े रेत की टीले मौजूद हैं जिस पर शोधकर्ताओं का कहना है कि कुछ अज्ञात प्रक्रिया ऐसी चल रही है जिससे कणों को जमा कर घर्षण बल का सामना करने का बल मिल रहा है। यह प्रणाली नई नहीं बल्कि लंबे से चल रही होगी। लैपोत्रे बताते हैं कि जैसे ही कण हवा में जाते हैं वे आपस में और सतह से ज्यादा टकराते हैं। इन टकरावों से दानों का आकार समय के साथ कम होता जाता है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि इसकी वजह से भूमध्य अक्षांशों पर सक्रिय रेत के टील बन जाते होंगे जिसमें धूल के कणों के कारण ज्यादा धूल जमा नहीं हो पाती होगी। टाइटन पर पृथ्वी और मंगल की तरह भी इस तरह का सक्रिय अवसादी चक्र चल रहा होगा जो भूआकृतियों के अक्षांशीय वितरण की व्याख्या कर सकेगा जो टाइटन मौसमी घर्षण और जमाव से प्रेरित होते होंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी अवधारणा के अलावा भी और स्थितियां हो सकती हैं जो इसकी व्याख्या कर सकती हैं।
चंद्रमा पृथ्वी के सबसे पास का खगोलीय पिंड है। इस पर सदियों से अध्ययन होता रहा है, लेकिन आज भी इसके कई रहस्य अनसुलझे हैं। इनमें से एक है इसके दो हिस्सों का बहुत ही अलग होना जिनमें से एक हमेशा पृथ्वी की ओर रहता है तो दूसरा हमेशा पीछे की ओर। नए अध्ययन ने इस बात का खुलासा किया है कि चंद्रमा के ये दो हिस्से इतने अलग क्यों हैं। इस रहस्य के पीछे चंद्रमा से क्षुद्रग्रह का टकराना था। शोधकर्ताओं ने इस टकराव के बारे में विस्तार से जानकारी निकाली है।
इस अध्ययन में बताया गया है कि यह टकराव इतना विशाल था कि इससे चंद्रमा की सूरत ही बदल गई जिससे चंद्रमा के दो हिस्सों का संतुलन गड़बड़ा गया जहां सामने के हिस्से में, जो पृथ्वी से हमेशा दिखाई देता रहता है, पुरातन लावा के बहने के गहरे रंग के अवशेष फैल गए, वही चंद्रमा के पीछे के हिस्से में क्रेटर्स की भरमार है और वहां भारी मात्रा में लावा बहने के अवशेष दिखाई नहीं देते हैं। साइंस एडवांस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात की व्याख्या की है चंद्रमा के दोनों हिस्सों में इतना भौगोलिक अंतर क्यों है। अरबों साल पहले चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के दक्षिण पोलएटकेन बेसिन पर यह टकराव हुआ था। इस विशाल टकराव का असर चंद्रमा के मेंटल तक पहुंच गया था। इस टकराव को सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा टकराव माना जाता है। इसकी वजह से ऊष्मा का एक बहुत बड़ा गुबार भी पैदा हुआ था जो चंद्रमा के आंतरिक भाग तक को प्रभावित कर गया था। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस गुबार में कई तरह के पदार्थ निकले थे जिसमें पृथ्वी के दुर्लभ और गर्म पैदा करने वाले पदार्थ शामिल थे जो चंद्रमा के आगे के हिस्से में फैल गए थे। इन्हीं गर्म तत्वों की मात्रा के कारण चंद्रमा के आगे के हिस्से में ज्वालामुखी की घटनाएं हो गई थीं। इनकी वजह से ही पृथ्वी से दिखाई देने वाले चंद्रमा के हिस्से की सतह ऐसी दिखाई देती है। इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और ब्राउन यूनिवर्सिटी के पीएचडी उम्मीदवार मैट जोन्स ने बताया, “हम जानते हैं कि बड़े टकराव ने बहुत सारी ऊष्मा पैदा की होगी। सवाल यही था कि इसका चंद्रमा पर असर क्या हुआ होगा।”
शोधकर्ताओं ने कम्प्यूटर सिम्यूलेशन के जरिए यह पता लगाया कि विशाल टकराव के कारण चंद्रमा के आंतरिक हिस्सों के संवहन में क्या बदलाव हुए होंगे। उन्होंने पाया कि इस टकराव की वजह से मेंटल में ऐसा बदलाव हुआ जिसका असर पृथ्वी की ओर वाले हिस्से पर ही हुआ। अध्ययन से पता चला क जब यह विशाल पिंड चंद्रमा से टकराया तो इससे पृथ्वी की ओर के हिस्से में भारी मात्रा में लावा बहने लगा। इससे वहां पहले से मौजूद पुराने क्रेटर भर गए।

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