Sunday, May 5, 2024
उत्तराखंड

बच्चों के साथ यौन अपराध करने पर हो सकती है मौत की सजा-एडवोकेट मिगलानी

हरिद्वार।  भारतीय जागरूकता समिति के अध्यक्ष हाईकोर्ट के अधिवकता ललित मिगलानी ने कहा कि आये दिन समाज में बच्चों के साथ यौन अपराधों की खबरें मिलती रहती हैं, जो किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करती हैं। लिहाजा, इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर सरकार ने वर्ष 2012 में एक विशेष कानून पोक्सो एक्ट बनाया। इस कानून के तहत दोषी व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। यह कानून बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है।
पोक्सो एक्ट में 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया है। इससे प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस यानी पॉक्सो (पीओसीएसओ) एक्ट को काफी मजबूती मिली है और जनसामान्य में भय पैदा हुआ है कि यदि गलत आचरण करेंगे तो कड़ा दंड भी मिल सकता है। इस कानून के बनने के बाद ऐसी हिंसा में कहीं कमी आने के संकेत हैं तो कहीं-कहीं स्थिति में अपेक्षाकृत सुधार महसूस नहीं किया जा रहा है। इससे प्रशासन का चिंतित होना स्वाभाविक है।
पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इस प्रकृति के मामले में सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। ऐसे मामले में दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इसी तरह, पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। इस प्रकार की धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है, जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है।
18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आता है। यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है। इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ दुष्कर्म, यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई का प्रावधान है। यही नहीं, इस एक्ट के जरिए बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान होती है।

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