Sunday, May 5, 2024
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सिटी बसों में दरवाजों पर लटकती हुई सवारियां और बखौफ विक्रम यही है राजधानी का परिवहन

देहरादून – शहर की वर्तमान तस्वीर देखें तो अंदाजा लग जाता है कि यहां कभी भी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर ध्यान नहीं दिया गया। विक्रमों में क्षमता से ज्यादा सवारी बैठ रहीं तो सिटी बसों में दरवाजों पर लटकती हुई सवारियां नजर आती हैं। कायदे-कानून का इन्हें कोई खौफ नहीं। ऑटो की बात करें तो मीटर सिस्टम के बावजूद यहां ऑटो में न मीटर लगे हैं, न चालक प्रति किलोमीटर तय किराये पर ही चलते हैं। प्रीपेड ऑटो सुविधा आइएसबीटी और रेलवे स्टेशन से शुरु जरूर की गई थी, लेकिन उसी तेजी से यह धड़ाम हो गई।
18 बरस का सफर तय करने के बावजूद परिवहन व्यवस्था बदहाल। प्रदेश सरकार से लेकर शहर में विकास कार्यों के लिए जिम्मेदार महकमे आमजन में स्मार्ट सिटी की उम्मीदें तो जगा रहे हैं, लेकिन शहर की परिवहन व्यवस्था को सुधारने की परवाह किसी को नहीं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधनों व सडक़ों की बात करें तो इन पर शहरवासी ङ्क्षहदी का सफर नहीं, बल्कि अंग्रेजी वाला सफर करते हैं। जिसका मतलब है कष्ट झेलना। दून की यातायात व्यवस्था की तस्वीर हूबहू ऐसी ही है। आज भी बेलगाम सिटी बसें और विक्रम शहर की फिजा बिगाडऩे पर आमादा हैं। न गति पर नियंत्रण है न नियमों की परवाह। लेकिन, हुक्मरानों के ख्वाब तब भी बड़े-बड़े। एमडीडीए मोनो रेल के ख्वाब दिखा रहा है तो सीएम साहब देहरादून से हरिद्वार तक मेट्रो ट्रेन चलाने के। हालत ये हैं कि आजतक हम शहर में बस स्टॉपेज तय नहीं कर पाए।
शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट दुरुस्त करने को वर्ष 2008 में उन्हें जेएनएनयूआरएम के तहत लो-फ्लोर बस दी गई थीं। इनका मकसद था यात्रियों को आरामदायक और सुविधाजनक सफर। राज्य में देहरादून और हरिद्वार शहर को 75-75 बसें व नैनीताल को 45 बसें मिलीं, मगर किसी भी शहर में इनका संचालन नहीं हुआ। बसें पहले डेढ़ साल तक खड़ी रहीं, बाद में इन्हें रोडवेज के सुपुर्द कर दिया गया। अब ये बसें एक शहर से दूसरे शहर में दौड़ रही हैं। खैर! शहरवासियों को लो-फ्लोर बसों में सफर तो नसीब नहीं हुआ, मगर सिटी बसों और विक्रमों में धक्के खाकर सफर जारी है। इस बीच जब देहरादून का नाम स्मार्ट सिटी और अमृत सिटी के लिए फाइनल हुआ तो दूनवासियों को लगा कि शायद अब मूलभूत सुविधाएं दुरुस्त होंगी। इनमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट अहम बिंदु है। सो उम्मीद की जा रही कि शायद अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कुछ सुधार जरूर होगा, लेकिन हैरत ये कि अब तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट को लेकर कोई प्लान बना ही नहीं।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट को लेकर शहर हित पर हमेशा राजनीतिक दबाव हावी रहा। सिटी बसों के परमिट की बात हो या विक्रमों को बंद करने की। राजनीतिज्ञों ने कभी इन पर निर्णय नहीं लेने दिया। सिटी बस, विक्रम व ऑटो में चालकों व परिचालकों के लिए नेम प्लेट के साथ वर्दी पहनना अनिवार्य है। मगर, परिवहन विभाग खामोश है। दस साल पहले सिटी बसों में गति पर नियंत्रण को स्पीड गवर्नर लगाने के फैसले पर भी अमल नहीं हुआ।

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