Monday, April 29, 2024
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देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में याज्ञवल्क्य यज्ञ अनुसंधान केन्द्र का शुभारंभ

हरिद्वार ————–

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय ने भारतीय संस्कृति के विकास के क्षेत्र में नित नई योजनाओं का प्रयोग करते हुए एक नया मुकाम हासिल किया है। इसी कड़ी में देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्डया ने याज्ञवल्क्य यज्ञ अनुसंधान केन्द्र का शुभारंभ किया। यहाँ सन् 1979 में स्थापित ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में चल रहे यज्ञौपैथी को आगे बढ़ाते हुए आधुनिक रूप दिया जा जायेगा। विवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्डया एवं कुलसंरक्षिका शैलदीदी ने केन्द्र की सतत प्रगति के लिए अपनी शुभकामनाएँ दी है। इस अवसर पर प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्डया ने कहा कि विवि से यज्ञ विज्ञान को लेकर सात शोधार्थी ने पीएचडी की है। उनके अनुभवों को ध्यान में रखते हुए इस केन्द्र का शुभारंभ किया गया है। इन दिनों भारतीय संस्कृति के दो आधार यज्ञ और गायत्री की महिमा को आधुनिक रूप देते हुए जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यज्ञ विज्ञान पर और अधिक गहनता से होने वाले शोध में यह केन्द्र शोधार्थियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इस केन्द्र में माइक्रो बायोलॉजी, फायटो केमिकल, एन्वॉयरन्मेंटल, प्लांट फिजियोलॉजी, ह्यूमन एलेक्ट्रोफीसिओलॉजी की लैब बनाई गई है। जिससे यज्ञ की धुआँ से रोगकारक बैक्टीरिया पर प्रभाव, समिधा एवं औषधियों की यज्ञीय धूम्र का हवा, पानी और मिट्टी पर प्रभाव, यज्ञीय धूम्र में सन्निहित तत्वों का प्रभाव, यज्ञीय धूम्र का विभिन्न मानवीय कोषों पर प्रभाव, शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर होने वाले प्रभाव, यज्ञ का वनस्पति एवं कृषि पर प्रभाव आदि विषयों पर शोध किये जायेंगे। इस हेतु एयर सैम्पलर, रोटरी-एवापोरेटर, लायोफिलाइजर आदि आधुनिक मशीन लगाई गयी हैं। इन दिनों विवि में यज्ञौपैथी के माध्यम से डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, वात रोग, मानसिक रोग, थायराइड आदि रोगों में शोध हो रहा है, इसमें संतोषजनक परिणाम भी मिल रहे हैं। प्रतिकुलपति ने कहा कि यज्ञौपैथी का व्यापक प्रयोग मानवीय स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण, कृषि लाभ, पर्यावरण शुद्धि व आध्यात्मिक प्रभाव सहित विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे लाभों का अध्ययन किया जा रहा है। प्रतिकुलपति ने आशा व्यक्त की कि चिकित्सा विज्ञान (माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, ड्रग डेवलपमेंट, थेराप्यूटिक्स, फार्माकोलॉजी, साइकोलॉजी आदि), पर्यावरण विज्ञान, कृषि विज्ञान, पुरातन विज्ञान, इतिहासवेत्ता के विशेषज्ञों द्वारा भी यहाँ शोध कार्य होगा। उन्होंने कहा कि इन यज्ञ अनुसंधानों को इंटरडिसिप्लिनरी जर्नल ऑफ यज्ञ रिसर्च (आईजेवायआर) नामक शोध पत्रिका के ऑनलाइन प्रकाशन द्वारा पढ़ा जा सकता है। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ. विरल पटेल, डॉ. वन्दना श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे।

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