कबाडियो के पारिवारिक कार्यक्रमो में भव्यता के दर्शन
हरिद्वार- उपनगरी ज्वालापुर पृथक राज्य पुनर्गठन के बाद कबाडियो के लिए स्वर्ग बन गई है। ज्वालापुर का कोई ऐसी गली मौहल्ला नही जहा 10-12 कबाडी न हो। उत्तराखण्ड बनने के बाद रोशनाबाद के औद्योगिक नगरी में तब्दील होने के बाद उनसे निकलने वाले कचरे और कबाड ने अन्य धधों में लगे लोगो को भी कबाडी बना दिया। हालत यह है कि सीमावर्ती जनपदो सहारनपुर,मुजफ्फरनगर व अन्य क्षेत्रो के दर्जनो कबाडी यहा पांव जमा चुके है। देखते देखते ही कबाडी करोड़पति बन गये। उत्तराखण्ड बनने से पूर्व गली गली मौहल्ला मौहल्ला धूमकर रददी व बेकार लोहा टिन खरीदने वाले फेरी वाले कबाडी अब कारो में घूम रहे है। ज्वालापुर का अहबाबनगर और सलेमपुर कबडियो का गढ बन गया है। इस बीच पालीथीन और अन्य निष्प्रयोज्य पन्नी का धंधा भी खूब फल फूल रहा है। रातो में गली मौहल्लो में और मुख्य मार्गों में रखे कचरे के ड्रामों से पालीथिन व पन्नी तलाश करती महिलाए व छोटे छोटे बच्चे मिल जायेगे। सरकारी आंकडें बताते है कि देशभर में साढे छह करोड़ लोग कचरा बीनकर दो वक्त का भोजन जुटा रहे है।
समय के साथ फले फूले कचरे के धंधे ने दूर दराज प्रदेशो के हजारो नागरिको को हरिद्वार ,सिडकुल क्षेत्र,और ज्वालापुर के विभिन्न इलाको में पनाह दी है। कई ऐसी बस्तियां बस गई है। जहां हजारो की सख्या में बगांल और असम मूल के परिवार निवास कर रहे है और सबका धधा कचरा बीनना है। महिलाए और बच्चे अलग अलग इलाको में धूम कर कचरा बीनते है। बताया जाता है कि असम और प.बगांल के दर्जनो व्यक्तियो ऐसे है जिनकी एक से अधिक पत्निया है और वही कूडे कचरे के ढेर में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करती धूमती है। जिसके जितने ज्यादा बच्चे उतनी ज्यादा आमदनी। ज्वालापुर, गंगनहर के किनारे बस चुकी बस्तियो में इन्ही लोगो की भरमार है। ज्वालापुर, हरिद्वार, कनखल और भेल सहित कई इलाको में सैकडो महिलाए और बच्चे गली मौहल्ला और मुख्य मार्गो पर कचरो के ड्रम व कूढे के ढेरो से पोली पैक व अन्य निष्प्रयोज्य प्लास्टिक आदि तलाश करते दिखते है। समानान्तर दिशा मे सिडकुल फैक्ट्रियों से निकलने वाले गत्ते, बेकार कागज और अन्य साम्रगी की खरीद फरोख्त में भारी मुनाफे को देखते हुए पडोसी जनपदो में बडे कबाडियो ने डेरा जमा लिया है। वह गली गली घूमने वाले फेरीवालो को एडवास रकम देकर रखते है। अहबाबनगर में कई कबाडियो के विशाल गोदाम है। सलेमपुर में कबाड़ी का धंधा गहराई से जमा चुका है जनचर्चाओ पर भरोसा करे तो कबाड़ियो की फैक्ट्रियों के प्रबध तंत्र से ऐसी साठगाठ है कि जितने कुंतल कचरा-कबाड निकलता है। उससे कम दर्शा कर कम्पनी को रकम अदा कर दी जाती है। बाकी जो वजन छिपाया जाता है। उसे होने वाले आमदनी का एक हिस्सा प्रंबध तत्र के व्यक्ति को दिया जाता है देश के औद्योगिक नव रत्नों में शुगर भेल से लोहा, स्क्रैप और अन्य कीमती घातु चोरी के मामलो नें कई बार पुलिस को छकाया। कई चोर रंगे हाथो पकडें गये। भेल से चोरी से निकला सामान दूसरे इलाको से बरामद हुआ । कहा जाता है कि भेल ने न जाने कितने लोगो को करोडपति बना दिया। बदलते जमाने में भेल सहित अन्य नामचीन इकाईया भी अब टेंण्डर प्रकाशित कराकर रददी सहित अन्य बेकार वस्तुओ कर नीलामी करने लगी है। बावजूद इसके बडें बडें ठेकेदारो की प्रबधन तत्र से साठंगाठ के चलते बडे़ पैमाने पर धाधली हो रही है जो किसी की पकड में नही आती। अगर आ जाती है तो किसी न किसी तरह मामले को रफा दफा कर दिया जाता है।