Sunday, May 19, 2024
दिल्लीसमाचार

लौह न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की विदाई

महत्वपूर्ण निर्णयों व अनुशासित कार्यप्रणाली के चलते एक विशेष कॉकस की आँखों की किरकिरी माने जाने वाले न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की बतौर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के अंतिम कार्य दिवस पर उनकी सेवाओं की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि न्यायमूर्ति मिश्रा सभी प्रतिकूलताओं का सामना करते हुए भी प्रकाश की किरण, ‘‘साहस का प्रतीक और धैर्य की किरण’’ हैं। न्यायमूर्ति मिश्रा कड़ी मेहनत, साहस और पराक्रम की विरासत छोड़कर जा रहे हैं। वह उन बड़ी कठिनाइयों के बारे में जानते हैं, जिनका न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को व्यक्तिगत मोर्चे पर सामना करना पड़ा और इसके बावजूद उन्होंनेअपने कर्तव्यों को निभाया।अरुण मिश्रा ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने अंतिम कार्य दिवस पर अदालत और बार को विदाई दी जब वे भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ पीठ साझा कर रहे थे। आभासी विदाई या वर्चुअल समारोह के दौरान उन्होंने कहा कि मैंने अपनी अंतरात्मा की आवाज से हर मामले को निपटाया है और दृढता से फैसला लिया है। मेरे निर्णयों का विश्लेषण किया जा सकता है लेकिन उन्हें कोई विशेष रंग नहीं दिया जाना चाहिए। हर फैसले का विश्लेषण करें लेकिन उन्हें यह रंग या वह रंग न दें। मैंने हमेशा अपने विद्वान भाइयों द्वारा मुझे दी गई शक्ति के हथियार को उधार लेने की कोशिश की। आप सभी ने जो कुछ भी किया है उसके पीछे शक्ति थी। मैंने बार के सदस्यों से बहुत कुछ सीखा है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने यह भी कहा कि मैंने अक्सर कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया है। अगर मैंने अपने जीवन में किसी को चोट पहुंचाई है, तो कृपया मुझे क्षमा करें। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट का लौह न्यायाधीशष् बताया।एजी ने याद दिलाया कि न्यायमूर्ति मिश्रा के साथ उनका एक लंबा निजी संबंध रहा, उन दिनों में जब जस्टिस मिश्रा 1999 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष थे। अटॉर्नी जनरल ने कहा,मैंने सुप्रीम कोर्ट में किसी जज को इतना दृढ़ और अडिग नहीं देखा। मैं उन्हें सुप्रीम कोर्ट के लौह न्यायाधीश के रूप में वर्णित करूंगा। न्यायमूर्ति मिश्रा ने अनेक महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जिनमें से कुछ ‘धरती- हिलाने’ वाले हैं। प्रशांत भूषण अवमानना प्रकरण का सन्दर्भ देते हुए, वेणुगोपाल ने कहा व्यक्तिगत रूप से, मुझे खुशी होती अगर कोई सजा नहीं दी जाती। लेकिन इस निर्णय ने कानून की अवमानना पर विस्तृत रूप से विचार किया है जो बहस का विषय होगा। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने विश्वास व्यक्त किया कि जस्टिस मिश्रा दिल्ली में ही रहेंगे।उन्हें भविष्यमें भी एक बहुत ही उपयोगी भूमिका निभानी होगी। मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं। ज्ञात हो इससे पूर्व, न्यायमूर्ति मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और कंफेडरेशन ऑफ इंडियन बार के विदाई समारोह में भाग लेने के निमंत्रण को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि उनका विवेक उन्हें उस समय किसी भी विदाई समारोह में शामिल होने की अनुमति नहीं देता जब दुनिया भर में लोग कोविड19 के चलते ब्व्टप्क्-19 पीड़ित हों।न्यायमूर्ति मिश्रा ने इसी वर्ष फरवरी के महीने में पीएम मोदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत दार्शनिक की संज्ञा देते हुए उन्हें सदाबहार ज्ञानी कहा था, जिसके बाद वो राजनीतिक पार्टियों के निशाने पर आ गए थे, उनके लिए मांग भी उठी थी कि उन्हें अदालत में सरकार के संबंधित चल रहे मामलों से स्वयं को अलग कर लेना चाहिए। ध्यान रहे न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा जब प्रधान न्यायाधीश थे, तब कुछ वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण मिश्र को महत्वपूर्ण मुकदमे दिए जाने से नाराज रहते थे। लगभग वही स्थिति उसके बाद भी बनी रही।
स्मरण रहे न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्र मूलरूप से मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले हैं।इन्होंने विज्ञान में परास्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद लॉ की पढ़ाई की।अरूण मिश्रा के पिता न्यायमूर्ति हरगोविंद मिश्रा जबलपुर हाई कोर्ट के जज थे। स्वयं उनकी बेटी भी दिल्ली हाई कोर्ट की वकील हैं ।लगभग 21 सालों तक वकालत करते रहने के साथ ही अरुण मिश्रा ने ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय में कानून पढ़ाने का भी काम किया है। वर्ष 1999 में वो एमपी हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज बने थे। वर्ष 2010 में उन्हें राजस्थान हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया ।2010 में ही राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्णकालिक मुख्य न्यायाधीश भी नियुक्त कर दिया गया। 2012 में कोलकाता हाई कोर्ट के वे मुख्य न्यायाधीश बने वर्ष 2014 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। बहरहाल, प्रशांत भूषण प्रकरण में जिस प्रकार उन्हें निशाने पर लिया गया, उसी प्रकार विदाई में भी रंग में भंग पड़ गया । न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के वर्चुअल विदाई समारोह में बोलने के अवसर से वंचित होने से परेशान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने इस घटना से दुखी होकर सीजेआई को एक पत्र लिखा है जिसमें इस पर अपनी ष्तीव्र निराशा और निंदाष् व्यक्त की है। उन्होंने लिखा कि मुझे स्वीकार करना चाहिए, सर्वोच्च न्यायालय ऐसे स्तर पर आ गया है जहां न्यायाधीश बार से डरते हैं। कृपया याद रखें, न्यायाधीश आते हैं और जाते हैं लेकिन बार स्थिर रहती है। हम इस महान संस्थान की वास्तविक ताकत हैं क्योंकि हम स्थायी हैं। मुझे कहना चाहिए, मैं इन घटनाओं से व्यक्तिगत रूप से बहुत दुखी हूं और दिसंबर में मेरा कार्यकाल पूरा होने तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित किसी भी समारोह में फिर कभी भाग नहीं लूंगा।

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