सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार के इरादों पर फेर पानी — जानिये पूरी खबर
—— सर्वोच्च न्यायालय ने सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मृत्यु की जांच सीबीआई से कराने के साथ ही जांच स्थानांतरित करने की मांग ठुकराकर मामले पर लीपापोती करने के महाराष्ट्र सरकार के इरादों पर पानी फेर दिया है। इस निर्णय के बाद सोशल मीडिया पर जश्न का माहौल है, ऐसा लगता है कि जैसे सुशांत की मृत्यु से पर्दा उठ गया है, उनके पिता को न्याय मिल गया है। परंतु ऐसा नहीं है, केवल मामले को भटकाने की कोशिशों पर विराम लगा है। सवाल यह है क्या ऐसे सबूत बचे हैं कि सीबीआई गुनाहगारों को जेल की सलाखों के पीछे भेज पाएगी। जिस प्रकार पालघर मॉब लिंचिंग मामले में गुनाहगारों को सजा न मिल सके, ऐसा रवैया महाराष्ट्र सरकार द्वारा अपनाने का प्रयास किया गया, वैसा ही रवैया अपनाने पर उसे मुंह की खानी पड़ी है। महाराष्ट्र सरकार सीबीआई जाँच में रोड़े नहीं अटकाएगी, इस बात की कोई गारंटी नहीं है?
स्मरण रहे सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 की धारा 406 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके जांच को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने यह टिप्पणी सुनाये गये उस निर्णय में की जिसमें उन्होंने बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में बिहार की राजधानी पटना में दर्ज प्राथमिकी को मुंबई स्थानांतरित करने की मॉडल रिया चक्रवर्ती की मांग ठुकरा दी। न्यायमूर्ति ने व्यवस्था दी कि बिहार पुलिस को सुशांत सिंह राजपूत की मौत के संदर्भ में उनके पिता की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार मौजूद है।
न्यायालय ने साथ ही मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपने को भी वैध ठहराया। इस प्रकरण में कोर्ट द्वारा विचारणीय प्रश्नों में से एक यह भी था कि क्या सुप्रीम कोर्ट को सीआरपीसी की धारा 406 के तहत जांच को (मुकदमा या अपील को नहीं) स्थानांतरित करने का अधिकार है या नहीं। न्यायालय ने यह भी कहा, इस अधिकार के इस्तेमाल का दायरा न्याय सुलभ कराने के लिए है। पूर्व के दृष्टांत यह दर्शाते हैं कि सीआरपीसी की धारा 406 के तहत स्थानांतरण याचिका को वैसे मामलों में मंजूरी दी गयी थी जहां कोर्ट को ऐसा लगता है कि मुकदमे की सुनवाई पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकती है और यदि ट्रायल जारी रखा गया तो निष्पक्ष और तटस्थ न्यायिक कार्यवाही नहीं हो सकती। कोर्ट ने राम चंदर सिंह सागर मामले में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की निम्नांकित टिप्पणियों का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि अपराध प्रक्रिया संहिता इस कोर्ट को धारा 406 के तहत एक मामले या अपील को एक हाईकोर्ट या एक अधीनस्थ अदालत से दूसरे हाईकोर्ट या दूसरी अधीनस्थ अदालत में स्थानांतरित करने का अधिकार प्रदान करती है, लेकिन यह कोर्ट को एक पुलिस स्टेशन से देश के दूसरे पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित करने का अधिकार महज इसलिए नहीं देती है, क्योंकि प्रथम सूचना या रिमांड रिपोर्ट कोर्ट को अग्रसारित किया जाना होता है।
इस निर्णय का बिहार के आसन्न विधानसभा चुनाव पर प्रभाव पड़ सकता है। शिवसेना के उत्तर भारतीयों के प्रति विद्वेषी रवैये के चलते बिहार के मतदाताओं में गहरी नाराजगी है ही। सुशांत राजपूत की रहस्यमयी मृत्यु पर महाराष्ट्र सरकार के असंवेदनशील रवैये, कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी द्वारा महाराष्ट्र सरकार के समर्थन, से बिहार में आक्रोश परिलक्षित हो रहा है। राजद की कांग्रेस नैसर्गिक सहयोगी है। राजद नेता तेजस्वी यादव को कांग्रेस की कारगुजारी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सही समय पर सही निर्णय कर राजपूत मतदाताओं के साथ ही युवा वर्ग की की सहानुभूति अर्जित कर ली है। नामी गिरामी वकीलों वाली कांग्रेस व महाराष्ट्र सरकार को कानूनी गच्चा देकर नीतीश ने अपनी प्रशासनिक क्षमता व राजनीतिक अनुभव का लोहा मनवा लिया है। यदि बिहार सरकार सर्वोच्च न्यायालय में हार भी जाती तो भी राजनीतिक लाभ उसे ही मिलता।
सम्भवतः सीबीआई जांच से महाराष्ट्र सरकार इसलिए कतरा रही थी क्योंकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे के बारे में आरोप लगाया जा रहा है कि वह 9 जून की उस डिनर पार्टी में शामिल थे, जिस में सुशांत राजपूत की सेक्रेटरी दिशा सालियान ने तथाकथित आत्महत्या की थी और पुलिस ने केस को रफा-दफा कर दिया था। शायद महाराष्ट्र पुलिस की मंशा सुशांत सिंह राजपूत के मामले को भी रफा-दफा करने की थी, इसीलिए उस ने एफआईआर ही दर्ज नहीं की थी।
कैसी विडंबना है कि दिव्या भारती 1993, सिल्क स्मिता 1996, कुनाल सिंह 2008, जिया खान 2013, दिशा गांगुली 2015, प्रत्यूषा बनर्जी बालिका वधू 2016 और सुशांत सिंह राजपूत 2020 सभी अपने घर में पंखे से लटकते मिले। लेकिन इन में से अधिकांश के बारे में आशंकाएं व्यक्त की गईं कि ये आत्महत्याएं नहीं, बल्कि हत्याएं थीं। श्रीदेवी की रहस्यमयी मृत्यु पर भी अभी भी प्रश्न उठाए जाते हैं। सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण में सब से बड़ा आरोप लगाया जा रहा है कि बालीवुड पर हावी कुछ परिवार किसी बाहरी हीरो या हीरोइन का एक सीमा से ज्यादा उठना बर्दाश्त नहीं करते, उन्हें रास्ते से हटा देते हैं या आत्महत्या के लिए विवश कर देते हैं। डी ग्रुप से बॉलीवुड के रिश्ते कोई रहस्य नहीं हैं। सुशांत सिंह बहुत तेजी से बॉलीवुड सितारों की अग्रिम कतार में शामिल होने की होड़ में थे।
ऐसा आरोप लगाया जाता है कि इन मठाधीशों का ड्रग माफियायों, स्मगलरों और पेशेवर हत्यारों के साथ गठजोड़ रहता है, वे या तो हत्या करवा देते हैं, या ऐसी परिस्थितियां उत्तपन्न करते हैं कि व्यक्ति स्वयं ही आत्महत्या कर ले। ऐसे ही हालातों से संघर्षरत कंगना राणावत का जज्बा प्रशंसनीय है जिन्होंने सुशांत राजपूत प्रकरण में तमाम दबावों को दरकिनार कर सीबीआई जांच के लिए आवाज उठाई जिसमें लोग जुड़ते गए, आंदोलन बनता गया।
इस अभियान में बॉलीवुड के उपेक्षित वर्ग अर्णब गोस्वामी सहित मीडिया का एक वर्ग, अनेक सामाजिक व राजनैतिक संगठन, डॉ सुब्रमण्यम स्वामी जैसे अनेक प्रबुद्धजन तथा सोशल मीडिया पर सक्रिय हार न मानने वाले युवा वर्ग की महती भूमिका रही। तथाकथित प्रगतिशील/ सेक्युलर कॉकस की यह पराजय कही जा सकती है। परन्तु वह अपनी ओछी हरकतों से बाज आएगा, ऐसी आशा करना व्यर्थ है। पालघर मॉब लिंचिंग प्रकरण में निर्दोष मुस्कराते साधु का चेहरा बरबस याद आता है, क्या उस दिवंगत आत्मा को न्याय मिलेगा? प्रश्न यह है क्या सुशांत राजपूत की तथाकथित आत्महत्या की जांच से बॉलीवुड के काले कारनामे सामने आ पाएंगे, इसकी तपिश महाराष्ट्र सरकार तक पहुंचेगी, राजपूत की सेक्रेट्री दिशा सालियान की तथा कथित आत्महत्या की परतें खुलेंगी?