देरी से केस दायर करने पर सुप्रीम कोर्ट की सरकारों को फटकार
नई दिल्ली —
मुकदमे देरी से दायर करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों के प्रति कड़ी नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा है ये मत सोचिए विलंब के प्रावधान सरकार पर लागू नहीं होते। विलंब पर सरकार से साथ कोई रियायत नहीं बरती जा सकती। ये टिप्पणियां करते हुए जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने अधिकारी पर जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि जुर्माने की 15000 रुपए की यह रकम उस अधिकारी से वसूली जाए, जिसने 462 से ज्यादा दिनों की देरी के साथ एसएलपी दायर कर की है। कोर्ट ने कहा कि ये ऐसे केस हैं, जिन्हें हम सर्टिफिकेट केस कहते हैं। ये सिर्फ औपचारिकता के लिए दायर किए जाते हैं, जिससे ये कहा जा सके कि मामला सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो गया है। अब इसमें कुछ नहीं किया जा सकता। अधिकारी अपनी चमड़ी बचाने के लिए ऐसे केस दायर करते हैं, जो पूरे मामले के दौरान ढंग से केस की पैरवी नहीं करते। पीठ ने कहा कि जुर्माने की रकम एक माह में सुप्रीम कोर्ट में जमा की जाए ये रकम सुप्रीम कोर्ट कर्मचारी कल्याण कोष को दी जाएगी। मामला गोवा में जंगल की भूमि के मालिकाना हक से जुड़ा था। 1977 में एक याचिकाकर्ता ने जिला मजिस्ट्रेट के यहां यह मुकदमा दायर किया, लेकिन सरकार ने इसमें जवाब तीन साल बाद 1980 में दायर किया। जिला जज ने याची के पक्ष में डिक्री कर दी। इसके खिलाफ विभाग 2003 में हाईकोर्ट में गया। हाईकोर्ट ने 2013 में अपील पैरवी के अभाव में खारिज कर दी क्योंकि विभाग की तरफ से कोई वकील पेश नहीं हुए। इसके बाद विभाग ने 2019 में हाईकोर्ट में देरी की माफी के लिये अर्जी दी गई। फरवरी 2019 में उच्च अदालत ने अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया था।
