आखिर किस भाषा मे और किसको लिखा था शहीद भगत सिंह ने पहला पत्र और क्या कहा था जानिए
13 अप्रेल 1919 को जलियांवाला बाग में अंग्रेज़ो ने बर्बर कत्लेआम किया।12 वर्षीय भगत सिंह दोसरे दिन वहाँ गए और रक्त सनी मिट्टी लेकर घर लौटे,तो कई सवाल उनके मन मे थे।अपनी छोटी बहिन,बीबी अमरकौर से उन्होंने अपने मन की बात की।
21 फरवरी 1921 को महंत नारायणदास ने ननकाना साहिब में 140 सिखों को बड़ी बेरहमी से मार डाला।बहुतो को जिंदा ही जला दिया।लाहौर से अपने गांव बंगा जाते समय भगत सिंह ने वह स्थान देखा और 5 मार्च को हुई बड़ी प्रेस कांफ्रेंस भी देखी।वे ननकाना साहिब से इस घटना सम्बन्धी एक केलेण्डर भी लेते गए थे।इस घटना से पूरे पंजाब के गांवों में अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ,जिसने महंत की मदद की थी,एक जोरदार आंदोलन उठा।हर गांव में काली पगड़ियां बांधने और पंजाबी पढ़ने का रिवाज चल पड़ा।भगत सिंह भी इसके प्रभाव में आए।भाई-बहिन-बीबी अमरकौर और भगत सिंह- ने पंजाबी पढ़नी व लिखनी सीखी।यह पत्र उसी समय का है , जो 1910 में जेल – यातनाओ से शहीद हुए चाचा स्वर्ण सिंह की पत्नी चाची हुक्मकौर को लिखा गया था।हिज्जे जैसे के तैसे दिए जा रहे है।गुरुमुखी लिपि में लिखा भगतसिंह का यह पहला पत्र है।बाद में पंजाबी में भगत सिंह ने बहुत से लेख भी लिखे
मेरी परम प्यारी चाची जी,
नमस्ते।
मुझे खत लिघ लिघने (लिखने) में देरी हो गयी है।सो उम्मीद है कि आप माफ़ करोगे।भाइया जी (पिता किशन सिंह) दिल्ली गये हुए है।भेभे (बेबे-माँ) मोरांवाली को गयी हुई है।बाक़ी सब राजी-खुशी है।बड़ी चाची जी को मत्था टेकना।माता जी को मत्था टेकना, कुलबीर सिंह को सति श्री अकाल या नमस्ते।
आपका आज्ञाकारी
भगत सिंह