धूल उड़ाती सड़कों से जीना हुआ मुहाल, शहर के भीतर और बाहर की सड़कें बदहाल
सतना।
आज ही के दिन 35 साल पहले पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की नींव पड़ी थी। इस कानून का मुख्य उद्देश्य सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र मानवीय पर्यावरण के सम्मेलन में लिये गए निर्णयों को लागू कराना था, लेकिन आज अधिनियम के लागू होने के 35 साल बाद जब हम पर्यावरणीय स्थितियों पर नजर दौड़ाते हैं तब स्पष्ट हो जाता है कि अधिनियम को प्रभावी तरीके से लागू कराने में व्यवस्था नाकाम साबित हुई है और पर्यावरण में प्रदूषण का जहर लगातार घुल रहा है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत बनाए गए पर्यावरणीय कानून का मुख्य उद्देश्य सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र मानवीय पर्यावरण के सम्मेलन में लिये गये निर्णयों को लागू करना था। उद्देश्य था कि अधिनियम बनेगा तो सरकार ऐसे प्रावधान लागू करेगी जिससे कि पर्यावरण स्वच्छ रहेगा लेकिन अधिनियम बनने के 35 साल बाद भी हम इस उद्देश्य से कोसों दूर हैं। प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सभी कारकों पर अंकुश लगाया जाएगा तभी इस अधिनियम की प्रासंगिकता साबित हो सकेगी। यह जिम्मेदारों को सुनिश्चित करना होगा। यदि हम सतना जिले को ही देखें तो इंडस्ट्रीयल सिटी के तौर पर विकसित हो रहे सतना को पर्यावरणीय स्थितियां ठीक नहीं है। यहां धुआ उगलते उद्योगों पर पर्यावरण प्रदूषण विभाग काफी हद तक अंकुश लगाए रखा है लेकिन धूल का गुबार उगलती सड़कें, नदियों पर प्रवाहित हो रही गंदगी जैसे पर्यावरण के अन्य कई विषय हैं जो जिले के वायुमंडल की ही नहीं बल्कि आम जनमानस के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का ध्यान सिर्फ फैक्ट्रियों, कारखानों व बड़े उद्योगों के प्रदूषण पर तो रहता है लेकिन प्रदूषण के दूसरे कारकों को बोर्ड नजर अंदाज कर रहा है। कहने को तो सतना स्मार्ट सिटी है लेकिन यहां की सड़कें पर्यावरणीय प्रदूषण में अहम भूमिका निभा रही है। सतना की प्रवेश द्वार माने जानेवाले मांधवगढ़ की ही जर्जर सड़क को देखिए जिससे दिनभर उठने वाले धूल और डस्ट के गुबार ने माधवढ़ वासियों को दमा, अस्थमा, एलर्जी व चर्मरोग का शिकार बना रहा है। यहां तकरीबन आधा सैंकड़ा छोटी बड़ी दुकाने हैं जिनके दुकानदारों को डस्ट से खराब होते सामान का दंश तो भोगना पड़ रहा है साथ ही वे तेजी से श्वांस रोग की गिरफ्त में भी फंस रहे हें। शोरगुल होने पर डस्ट बिछा देने से इस सड़क के जख्म और गहरे हो जाते हैं। हवा चलने पर डस्ट उड़कर यहां के रहवासियों के फेंफड़ों को संक्रमित करती है तो बारिश होने पर वही डस्ट दल-दल बनकर दुर्घटनाओं का सबब बनकर दुर्घटनाओं का सबब बनती है। इसी प्रकार मैहर से आने के दौरान सतना नदी और बायपास मोड़ के बीच की सड़क भी गड्ढो में पट गई है जिससे दिन भर उडऩे वाली धूल यहां के लोगों को बीमार बना रही है। ये दोनों सड़कें सतना के प्रवेश द्वार की सड़के हैं जिन्हें विभागीय अधिकारी लगातार नजर अंदाज कर रहे हैं।