पर्यटकों की पंसद बना गढ़वाली खाना
देहरादून
टिहरी जिले में मॉडल होम स्टे विलेज के रूप में अपनी पहचान बना चुका तिवाड़ गांव अब गढ़वाली खाने और बर्ड वॉचिंग के जरिये पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहा है. यहां आने वाले पर्यटक होम स्टे में गढ़वाली खाने के साथ साथ उसे बनाना भी सीख रहे है, जिसे लेकर उनमें खासा उत्साह दिख रहा है।
टिहरी डैम की झील से सटे तिवाड़ गांव में 22 से अधिक होम स्टे हैं. इस वजह से इसे मॉडल होम स्टे विलेज के नाम से जाना जाता है. अनलॉक के बाद पर्यटक जहां प्राकृतिक सुंदरता को देखने तिवाड़ गांव पहुंच रहे है वहीं गढ़वाली खाना भी उन्हें खासा पसंद आ रहा है. यहां गढ़वाली खाने में उन्हें कड़ी, फाणा, रोटाना, अर्से, कापली दिए जा रहे हैं जो स्वादिष्ट होने के साथ ही इम्यूनिटी बढ़ाने वाले हैं।
राजस्थान से पहुंची पर्यटक सोनिका का कहना है कि उन्होंने इंटरनेट में टिहरी के बारे में पढ़ा था और फिर तिवाड़ गांव के बारे में भी पता चला. तभी उन्होंने परिवार के साथ यहां कुछ समय बिताने का प्रोग्राम बनाया. वे लोग तीन दिनों से तिवाड़ गांव में होम स्टे में रह रहे हैं और गढ़वाली खाना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है. सोनिका तो अब ये व्यंजन बनाना भी सीख रही हैं।
श्रीनगर से आए वैज्ञानिक और पर्यावरणविद डॉक्टर एके साहनी 2013 में तिवाड़ गांव आए थे. तब यहां लोगों को होम स्टे के बारे में पता भी नहीं था. इसके बाद 2014 में उन्होंने लोगों को होम स्टे के बारे में जानकारी और ट्रेनिंग दी. जिसके बाद धीरे-धीरे लोगों ने होम स्टे बनाए और आज तिवाड़ गांव होम स्टे के जरिए अपनी अलग पहचान बना चुका है. इससे लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हुए चुके युवक भी स्वरोजगार से जुड़ रहे हैं।
तिवाड़ गांव में सबसे पहले होम स्टे की शुरूआत करने वाले स्थानीय निवासी कुलदीप पंवार का कहना है कि होम स्टे के जरिए आज तिवाड़ गांव अपनी अलग पहचान बना चुका है और टिहरी झील से सटे आसपास के गांवों के लिए भी एक बेहतरीन उदाहरण बन चुका है. होम स्टे के साथ साथ गढ़वाली खाना भी पर्यटकों को खूब पंसद आ रहा है जिससे स्थानीय महिलाओं का आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है और वो भी किसी न किसी तरह स्वरोजगार से जुड़ रही हैं।