Wednesday, April 24, 2024
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गलत जिद पर अड़े हैं नगा विद्रोही

अब यह बात तो सभी को समझ लेनी चाहिए कि देश की संप्रभुता और अखंडता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। पिछले वर्ष अर्थात् 5 अगस्त 2019 को जब गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की कई धाराओं को निष्प्रभावी कर दिया, तभी यह स्पष्ट हो गया कि नरेन्द्र मोदी की सरकार देश की अखंडता के लिए कितना कठोर और जोखिम भरा कदम उठा सकती है। पूर्वोत्तर राज्यों मंे अब भी कुछ संगठनों को गलतफहमी है। इसी तरह का एक संगठन एनएससीएन-आइएम है जो नगालैण्ड मंे अलग झंडा और संविधान की मांग पर अड़ा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूर्वोत्तर भारत के विकास की ठोस योजनाएं 2014 से ही बना रहे हैं लेकिन यह विकास तभी धरातल पर आ पाएगा जब वहां उग्रवाद और अलगाववाद खत्म होगा। पीएम मोदी ने कहा था कि पूर्वोत्तर राज्य भारत के विकास के दरवाजे हैं। इसलिए नगालैण्ड मंे शांति स्थापना का प्रयास फिर से शुरू हो गया है। इससे पहले भी वहां कई समझौते हो चुके हैं लेकिन सशस्त्र विद्रोही गलत जिद पर अड़े हैं। उनको अलग झंडा और अलग संविधान किसी भी कीमत पर नहीं दिया जा सकता है।
इसी वर्ष 23 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पूर्वोत्तर में भारत के विकास का इंजन बनने की क्षमता है और उनके इस विश्वास का कारण यह है कि इस क्षेत्र में शांति की स्थापना हो रही है। उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मणिपुर जल आपूर्ति परियोजना की आधारशिला रखते हुए यह बात कही थी ‘मणिपुर जल आपूर्ति परियोजना का मकसद ग्रेटर इंफाल योजना क्षेत्र में शेष घरों में पाइप के जरिए स्वच्छ जलापूर्ति कराना और मणिपुर के सभी 16 जिलों में 2,80,756 घरों के साथ 1,731 ग्रामीण बस्तियों में जलापूर्ति करना है। नगालैण्ड समेत पूर्वोत्तर के सभी राज्यों मंे विकास का वादा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, कोरोना के इस संकट काल में भी देश रुका नहीं है, देश थमा नहीं है। हमें कोरोना के खिलाफ मजबूती से लड़ते रहना है और साथ ही विकास के कार्यों को भी पूरी ताकत से आगे बढ़ाना है। उनकी सरकार द्वारा पूर्वोत्तर में किए गए विकास कार्यों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया, ‘‘पूर्वोत्तर में देश का ‘ग्रोथ इंजन’ बनने की क्षमता है। दिनों-दिन मेरा ये विश्वास इसलिए गहरा हो रहा है क्योंकि अब पूरे नॉर्थ ईस्ट में शांति की स्थापना हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘एक तरफ जहां मणिपुर में ब्लॉकेड इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं, वहीं असम में दशकों से चला आ रहा हिंसा का दौर थम गया है। त्रिपुरा और मिजोरम में भी युवाओं ने हिंसा के रास्ते का त्याग किया है। अब ब्रू-रियांग शरणार्थी एक बेहतर जीवन की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इस बार तो पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत को एक तरह से दोहरी चुनौतियों से निपटना पड़ रहा है। पूर्वोत्तर में फिर इस साल भारी बारिश से बहुत नुकसान हो रहा हैं अनेक लोगों की मृत्यु हुई है, अनेक लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है।
दीमापुर के पास हैब्रोन मंे हो रही नागा शांति वार्ता में अक बार फिर अड़चनें आई हैं। बातचीत में शामिल नगालैंड के अग्रणी सशस्त्र विद्रोही समूह, एनएससीएन-आईएम अलग ध्वज और संविधान की मांग पर अड़ गया है. विद्रोही समूह ने 18 सितम्बर को कहा कि एक अलग ध्वज और संविधान के बिना, केंद्र सरकार के साथ सम्मानजनक शांति समझौता नहीं हो सकता। एनएससीएन-आईएम की एक संयुक्त परिषद की बैठक भी हुई, जिसमें नागा लोगों के ऐतिहासिक और राजनीतिक अधिकारों और भारत-नागा राजनीतिक वार्ता कैसे मुकाम पर पहुंचे, इस पर विचार-विमर्श किया गया। एनएससीएन-आईएम का कड़ा रुख ऐसे समय में सामने आया है, जब शांति वार्ता पर गतिरोध की मार पड़ी है क्योंकि समूह और वार्ताकार (नगालैंड के गवर्नर आरएन रवि) के बीच गहरे मतभेद हैं।
एनएससीएन-आईएम ने एक प्रेस रिलीज में कहा है, एनएससीएन-आईएम के रुख को दोहराने के लिए सदन ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव अपनाया है कि नागा राष्ट्रीय ध्वज और येहजबाओ (संविधान) को नागा सौदे को सम्मानजनक और स्वीकार्य बनाने के लिए भारत-नागा राजनीतिक समाधान का हिस्सा बनना चाहिए। रिलीज में यह भी कहा गया है कि केंद्र और एनएससीएन-आईएम को 3 अगस्त, 2015 को हस्ताक्षरित ऐतिहासिक फ्रेमवर्क समझौते के आधार पर ही अंतिम समझौते की तलाश करनी चाहिए। नगालैंड गवर्नर और मुख्य वार्ताकार के बिना गृह मंत्रालय और खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों के साथ बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए महासचिव थुइलिंगेंग मुइवा सहित एनएससीएन-आईएम के शीर्ष नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली में डेरा डाले हुए है।
बीते 18 साल से शांति वार्ता में शामिल सबसे बड़े नगा समूह (इस्साक-मुइवा) ने केंद्र सरकार के साथ हस्ताक्षरित 2015 के समझौते की मूल प्रति जारी की है। समूह ने गवर्नर और वार्ताकार आरएन रवि पर आरोप लगाया है कि उन्होंने मूल फ्रेमवर्क समझौते के शब्दों में हेरफेर कर नगा समूहों के बीच प्रसारित किया। मामले में आरएन रवि या केंद्र की तरफ से अभी आरोपों का जवाब नहीं दिया गया है। उधर, नगा नेताओं ने कहा है कि बिना अलग ध्वज और संविधान के शांति समझौता नहीं हो सकता, नगालैण्ड के सशस्त्र विद्रोही समूह का कड़ा रुख है। इससे पहले एनएससीएन (आईएम) ने बयान दिया था कि नगा शांति समझौते में अभी बाधा है। समूह ने राज्यपाल आरएन रवि को वार्ताकार के रूप में हटाने के लिए केंद्र सरकार से कहा है। नगा फ्रेमवर्क समझौते पर 2015 में हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन एक अलग ध्वज और संविधान पर असहमति के कारण कोई संधि नहीं हुई है। पिछले साल, एनएससीएन (आईएम) ने अलग ध्वज और संविधान की मांग पर अपना रुख सख्त कर दिया था- जिसे केंद्र ने पहले ही खारिज कर दिया था। एन को छोड़कर, अन्य नागा समूह, जो 2017 में इस प्रक्रिया में शामिल हुए, एक अलग ध्वज और संविधान के बिना अंतिम शांति समझौते के लिए तैयार हैं।
नगा शांति समझौते पर संसदीय स्थायी समिति को जानकारी देते हुए, राज्यपाल रवि ने कहा कि समझौते की रूपरेखा समझौते में नहीं थी। रवि के अनुसार, फ्रेमवर्क एग्रीमेंट नागा इतिहास की विशिष्टता की सरकार द्वारा मान्यता के बारे में था और यह समझ लें कि नगा इतिहास की विशिष्टता के संबंध में समावेशी समझौता भारतीय महासंघ के भीतर होगा। बयान में कहा गया, उन्होंने आगे कहा कि यह समझौते में निहित था कि नागाओं के लिए कुछ विशेष व्यवस्था करनी होगी। यह केवल फ्रेमवर्क एग्रीमेंट की राज्यपाल की व्याख्या है। एनएसएनसी (आईएम) ने नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री एससी जमीर पर इस प्रक्रिया में बाधा डालने के आरोप लगाए हैं।
नगा विद्रोही गुट ने राज्यपाल पर नगा राजनीतिक मुद्दे को संवैधानिक कानून और व्यवस्था की समस्या के रूप में बदलने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया। प्रेस बयान में कहा गया, हमने एनआईए द्वारा एनएससीएन (आईएम) के सदस्यों की हत्या, घर की छापेमारी, गिरफ्तारी और मैनहंट को देखा है। जब से रवि राज्यपाल बने हैं असम राइफल्स जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो गई है।
वार्ताकार प्रधानमंत्री के आदेश का पालन करता है और समूह ने कहा कि वह राज्यपाल से वार्ताकार के रूप में बात कर रहा है और राज्यपाल के रूप में नहीं। लेकिन चूंकि रवि ने बातचीत की प्रक्रिया में उलझन पैदा की है, इसलिए पीएम ने आईबी से बातचीत जारी रखने के लिए कहा है। समूह ने कहा, केंद्र लंबित बिंदुओं पर अपना मन बनाए।
गत 14 अगस्त को, एक बयान में एनएससीएन (आईएम) के महासचिव थुइन्गालेंग मुइवा ने कहा था कि केंद्र ने 2015 में हस्ताक्षरित फ्रेमवर्क समझौते के माध्यम से नगाओं की संप्रभुता को मान्यता दी थी। यह दोहराते हुए कि नागा सह-अस्तित्व में होंगे लेकिन भारत के साथ विलय नहीं करेंगे। जाहिर है कि वार्ता में अलगाव का पेंच फंसा है और इस बिन्दु पर सरकार कोई समझौता नहीं करेगी।

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