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मण्डूकासन – भाग 1
विधि –
सर्वप्रथम वज्रासन में बैठ जाएँ और इसके बाद दोनों हाथों के अंगूठों को अन्दर रखते हुए मुठ्ठियाँ बन्द कर लें और अंगूठों वाला भाग नाभि के दोनों ओर लगाकर श्वास बाहर निकालकर उड्डियान बन्ध लगाएँ और सामने की ओर झक जाएँ , दृष्टि सामने की ओर रहे । इस स्थिति में कुछ समय तक रहें , यदि अधिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं , तो मन को मणिपुर चक्र पर केन्द्रित करें तथा नाभि का स्पन्दन अंगूठों के मूल भाग पर अनुभव करते रहें और नाभि के स्पन्दन की गणना भी कर सकते हैं । यथासम्भव इस स्थिति में ठहरने के बाद जब श्वास लेने की आवश्यकता अनुभव करें , तो वापस वज्रासन की स्थिति में आ जाएँ और वापस आने के बाद ही श्वास लेना चाहिए । इस प्रकार से इसकी 1— 10 आवृत्ति कर सकते हैं।
लाभ –
विधिपूर्वक इस आसन को करने से कभी भी मधुमेह जैसी भयावह व्याधि नहीं होगी । जठराग्नि प्रदीत रहेगी , पेट की वसा भी ( Fat ) नहीं बढ़ेगी , और यदि वसा बढ़ी हुई भी है तो वह भी धीरे – धीरे सामान्य हो जाएगी । इससे आँतें भी अपना कार्य व्यवस्थित रूप से करती रहेंगी । जिससे कभी भी कब्ज , गैस तथा अजीर्ण जैसी व्याधियाँ नहीं होंगी । यकृत् , अग्न्याशय , पित्ताशय , तिल्ली ( Spleen ) , वृक्क , अधिवृक्क ( Prostate Gland ) आदि अवयव भी ठीक प्रकार से अपना कार्य सम्पन्न करते रहेंगे । धातु सम्बन्धित रोग कभी भी नहीं होंगे ।
सावधानी –
सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस , पीठ दर्द , स्लिप डिस्क आदि रोगों में सामने की ओर नहीं झुकना चाहिए वे वज्रासन में बैठकर ही उड्डियान बंध लगाएँ ।